मंदिरों में झूला महोत्सव का हुआ शुभारंभ
कोंच(जालौन) सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को श्रावणी तीज कहते हैं जिसमें पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती और भगवान शिव के पुनर्मिलन के रूप में जाना जाता है मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ माता पार्वती के कठिन तप से प्रसन्न हुए और उन्होंने एक सौ आठ वें जन्म में पार्वती जी से विवाह रचाया इसी कारण हरियाली तीज का विशेष महत्व है और इसी खुशी को व्यक्त करने के लिए हम अपने घरों में झूला डालकर श्री विग्रहों को विराजमान कर उनका पूजन अर्चन करते हुए उन्हें झूला झुलाते हैं जिसे हरियाली तीज भी कहा जाता है के अवसर पर विभिन्न मंदिरों में अनुष्ठानिक कार्यक्रम आयोजित किए गए और भगवान के श्रीविग्रहों को झूलों में विराजमान कराया गया इसके अलावा सनातनी घरों में भी विशेष पूजा अर्चना कर पुष्पों-पत्रों से सुसज्जित झूलों में भगवान के श्रीविग्रहों को विराजमान कर उत्सव मनाया गया महारानी लक्ष्मीबाई के गुरुद्वारे प्राचीन रामलला मंदिर में श्रावण तीज से झूला महोत्सव का प्रारंभ भी हो गया जो पूरे एक पखवाड़े तक जारी रहेगा
सावन का महीना वैसे भी हरा भरा और आनंद प्रदान करने वाला होता है जिसमें चारों ओर छाईं घनघोर घटाएं और मोरों की सुरीली आवाजें मन को आनन्दित करने वाली होती हैं शनिवार को श्रावण तीज से एक तरह से पर्वों और त्योहारों का श्रीगणेश भी हो गया है रामलला मंदिर अवधबिहारी लाल मंदिर द्वारिकाधीश मंदिर सीतानाथ मंदिर नृसिंह मंदिर राम जानकी मंदिर चतुर्भुज मंदिर (बड़ा मंदिर) मुरली मनोहर मंदिर कल्याणराय मंदिर बल्दाऊ मंदिर आदि में विशेष धार्मिक अनुष्ठानों के बीच भगवान के श्रीविग्रहों को झूलों में विराजमान कराकर उनकी आरती उतारी गई और प्रसाद वितरित किया गया बड़ी माता सिंह वाहिनी हुल्का देवी काली देवी राज राजेश्वरी कैला देवी आनंदी माता बोदरी माता शीतला माता नक्टी माता आदि मंदिरों में जाकर हलवा पूड़ी समर्पित कर घर में धन धान्य सुख-समृद्धि और शांति की कामना की सनातनी घरों में भी झूले डाल कर भगवान के श्रीविग्रहों को विराजमान किये गए।
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