भागवत कथा के दूसरे दिन परीक्षित जन्म वासुदेव की कथा सुनने पहुंचे लोग
वीरेंद्र सिंह सेंगर
अजीतमल औरैया। मझकरा बाबा मंदिर फरिहा में श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान महायज्ञ एवम विशाल संत समागम में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान महायज्ञ के दूसरे दिन कथा वाचक संत शिरोमणि जगतगुरु रामानंदाचार्य नैयायिक वैश्वचार्य डॉ सियाराम दास जी महाराज, रघुनाथ मंदिर रामानंदपीठ माउंट आबू राजस्थान ने परीक्षित जन्म, सुखदेव आगमन की कथा सुनाई। उन्होंने युद्ध में गुरु द्रोण के मारे जाने से क्रोधित होकर उनके पुत्र अश्वत्थामा ने क्रोधित होकर पांडवों को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया। ब्रह्मास्त्र लगने से अभिमन्यु की गर्भवती पत्नी उत्तरा के गर्भ से परीक्षित का जन्म हुआ। परीक्षित जब बड़े हुए नाती पोतों से भरा पूरा परिवार था। सुख वैभव से समृद्ध राज्य था। वह जब 60 वर्ष के थे। एक दिन वह क्रमिक मुनि से मिलने उनके आश्रम गए। उन्होंने आवाज लगाई, लेकिन तप में लीन होने के कारण मुनि ने कोई उत्तर नहीं दिया। राजा परीक्षित स्वयं का अपमान मानकर निकट मृत पड़े सर्प को क्रमिक मुनि के गले में डाल कर चले गए। अपने पिता के गले में मृत सर्प को देख मुनि के पुत्र ने श्राप दे दिया कि जिस किसी ने भी मेरे पिता के गले में मृत सर्प डाला है, उसकी मृत्यु सात दिनों के अंदर सांप के डसने से हो जाएगी। ऐसा ज्ञात होने पर राजा परीक्षित ने विद्वानों को अपने दरबार में बुलाया और उनसे राय मांगी। उस समय विद्वानों ने उन्हें सुखदेव का नाम सुझाया और इस प्रकार सुखदेव का आगमन हुआ।
What's Your Reaction?