नांग पंचमी के दिन पूजे गए नांग देवता
कोंच (जालौन) कालांतर में जब अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित के पुत्र जन्मेजय को पता चला कि उनके पिता की मृत्यु का कारण सर्प दंश था तो उन्होंने नागों से बदला लेने की सोची और सर्प सत्र नाम के यज्ञ का आयोजन किया यह यज्ञ सांपो के अस्तत्व को मिटाने के लिए किया गया था इस यज्ञ में सभी नांग जलकर नष्ट हो रहे थे तब अपनी सुरक्षा को लेकर नांग ऋषि आस्तिक के पास पहुंचे और अपनी व्यथा को बताया तब ऋषि ने आकर जन्मेजय से इस यज्ञ को रुकवाया और सांपों को बचाया यह दिन सावन की शुक्ल पक्ष की पंचमी का दिन था और तब से ही नांग पंचमी।के रूप में इसे मनाया जाता है और इस दिन लोग मंदिरों में जाते है और बिधि बिधान से नांग देवता की पूजा करते है मान्यता है कि नांग देवताओं की बिधि पूर्वक पूजा करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है और शुभ फलों की प्राप्ति होती है इसी को लेकर नगर व क्षेत्र में दिन शुक्रवार को नांग पंचमी के अवसर पर सनातनी परम्परा के अनुयायियों ने सांप शाश्वतता और दिव्य ज्ञान के प्रतीक के प्राप्ति के लिए परेथा रोड स्थित नांग देवता के मंदिर पर पहुंचकर श्रद्धालुओं ने विधि विधान से नांग देवता की पूजा की और उनसे आशीर्वाद लिया।
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