नही बचा सका पत्नी व बच्चे की जान,ग्रामीणों ने छत को उठाया जैको से,निकाले गए मृतकों के शव

Aug 12, 2024 - 07:59
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नही बचा सका पत्नी व बच्चे की जान,ग्रामीणों ने छत को उठाया जैको से,निकाले गए मृतकों के शव

कोंच (जालौन) - कोतवाली अंतर्गत ग्राम महलुआ में कमरे की छत गिरने से मलवे के नीचे 2 घण्टे तक घायल अखिलेश यादव अपनी पत्नी और दो बच्चों को बचाने के लिए मलवा हटाने के लिए संघर्ष करता रहा दोनो पैर मलवे के गिरने से टूट जाने से वह मदद के लिए चिल्लाता रहा और जख्मी हाथों से मलवे को हटाता रहा 2 घण्टे बाद जब मलवा हटा तो उसकी पत्नी और बेटे की मौत हो चुकी थी।

ग्राम महलुआ रविवार को सुबह सबा 5 बजे जब बादल कड़क रहे थे तभी अखिलेश यादव उम्र 30 वर्ष अपनी पत्नी मोहिनी उम्र 28 वर्ष पुत्र आदित्य उर्फ देबू उम्र 6 पुत्री अदिति उम्र 8 वर्ष के साथ अपने कमरें में गहरी नींद में सो रहा था तभी अचानक कमरें की दीवारें ढह गई और कमरे की पूरी छत नीचे आ गिरी जिसके मलवे में अखिलेश यादव और उसके परिवार के तीनों सदस्य दब गए अखिलेश ने मलवा हटाने की पूरी कोशिश की लेकिन छत का लेंटर ऊपर होने के कारण कुछ कर नही सका परिवार और गांव बाले भी असहाय थे क्योंकि 10 फिट लंबा लेंटर किसी से ही भी नही रहा गांव बालों ने लेंटर हटाने के लिए जेसीबी मंगवाई फायर बिग्रेड के कर्मचारियों को मौके पर बुलवाया लेकिन लेंटर नही हटा सकें तब लेंटर के नीचे जैक लगाए गये और जैक के सहारे लेंटर को उठाया गया तब कही जाकर मलवे के नीचे दबे अखिलेश और उसकी पत्नी और दोनों बच्चों को बाहर निकाला जा सका हालांकि इससे पहले अखिलेश अपनी पत्नी और पुत्र को बचाने के लिए जद्दोजहद करता रहा लेकिन उसके पैर टूट जाने के कारण वह अपने हाथों को ही हिला पा रहा था जिससे उसके हाथ भी जख्मी हो गए थे मलवे से जब उसकी पत्नी मोहिनी और पुत्र आदित्य उर्फ देबू बाहर निकाले गए तब तक उनकी मौत हो चुकी थी गम्भीररूप से घायल अखिलेश और उसकी पुत्री अदिति का उपचार झांसी मेडिकल कॉलेज में चल रहा है।

आर्थिक रूप से कमजोर था परिवार

हादसे में घायल अखिलेश के पास एक बीघा भूमि है वह दूध बेचकर परिवार का भरण पोषण कर रहा हैं उसके दोनों बच्चे पढ़ाई के लिए करीब 5 किलोमीटर दूर कोंच में प्रतिदिन पड़ने के लिए आते जाते है वर्ष 2012 में उसे मकान बनाने के लिए इंद्रा आवास के रूप में 45 हजार रुपये मिले थे जिसमें उसने एक कमरा बना लिया था कमरा बनाते समय पैसा कम होने के कारण न तो बीम डाली गई थी और न ही कही कोई पिलर खड़े किये गए थे लेन्टर डालते समय भी लेन्टर बीम भी नही डाली गई कमरे की एक दीवाल भी 4 इंची चिनाई की थी जो इतने वर्षों में क्षतिग्रस्त ही चुकी थी बरसात को देखते हुए उस कमरें की छत के नीचे सोना रहना जोखिम भरा तो था ही ऊपर से बरसात ने कमजोर मकान की दिवालो को और जीर्णशीर्ण कर दिया था बीते दो दिनों से रुक रुक कर बारिश भी रही थी हादसे के वक्त बादल भी कड़क रहे थे जिससे सबसे पहले क्षतिग्रस्त दीवाल की गिरी जो और कमजोर लोगो को ढहा कर ले गयी और पूरा का पूरा लेन्टर जमीदोज हो गया।

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