मुहर्रम" ज़ुल्म अत्याचार के विरुद्ध उठने वाली आवाज़
रोहित गुप्ता/ सुरेन्द्र प्रताप श्रीवास्तव मुन्ना
उतरौला/बलरामपुर
इस्लामी वर्ष के पहले महीने मुहर्रम की शुरआत इसी सप्ताह से होने वाली है!
मुहर्रम का शुमार इस्लाम के चार पवित्र महीनों में होता है,जिसे अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद साहब ने अल्लाह का महीना कहा है!
मुहर्रम के महीने के दसवे दिन को यौमें आशुरा कहा जाता है
यौमे आशुरा का इस्लाम ही नहीं,मानवता के इतिहास में भी महत्वपूर्ण स्थान है,यह वो दिन है जब सत्य,न्याय,मानवीयता के लिए संघर्षरत हज़रत मुहम्मद साहब के नवासे हुसैन इब्ने अली की कर्बला के युद्ध में उनके बहत्तर साथियों के साथ शहादत हुई थी।
इमाम हुसैन विश्व इतिहास की ऐसी कुछ महानतम विभूतियों में हैं,जिन्होंने बड़ी सीमित सैन्य क्षमता के बावज़ूद आतंकवादी यज़ीद की विशाल सेना के आगे आत्मसमर्पण कर देने के बजाय लड़ते हुए अपनी और अपने समूचे कुनबे की क़ुर्बानी देना स्वीकार किया था।
कर्बला में इंसानियत के दुश्मन यजीद की अथाह सैन्य शक्ति के विरुद्ध हुसैन और उनके थोड़े-से स्वजनों के प्रतीकात्मक प्रतिरोध और आख़िर में उन सबको भूखा-प्यासा रखकर यज़ीद की सेना द्वारा उनकी बर्बर हत्या के किस्से सुनकर मुस्लिमों की ही नहीं,हर संवेदनशील व्यक्ति की आंखें नम हो जाती हैं
मनुष्यता और न्याय के हित में अपना सब कुछ लुटाकर कर्बला में हुसैन ने जिस अदम्य साहस की रोशनी फैलाई,वह सदियों से न्याय और उच्च जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए लड़ रहे लोगों की राह रौशन करती आ रही है
इमाम हुसैन का वह बलिदान दुनिया भर के मुसलमानों के लिए ही नहीं,संपूर्ण मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
इमाम हुसैन सिर्फ़ मुसलमानों के नहीं,सारी मानवता के हैं यही वज़ह है कि यजीद के साथ जंग में ब्राह्मण रहब दत्त के सात बेटों ने भी शहादत दी थी,जिनके वंशज ख़ुद को गर्व से हुसैनी ब्राह्मण कहते हैं।
लोग सही कहते हैं कि न्याय के पक्ष में संघर्ष करने वाले लोगों की अंतरात्मा में इमाम हुसैन आज भी ज़िन्दा हैं,मगर यजीद भी अभी कहां मरा है?यजीद अब एक व्यक्ति का नहीं,एक अन्यायी और बर्बर सोच और मानसिकता का नाम है!
दुनिया में जहां कहीं भी आतंक,अन्याय,बर्बरता,अपराध और हिंसा है,यजीद वहां-वहां मौज़ूद है।
यही वज़ह है कि हुसैन हर दौर में प्रासंगिक हैं।
मुहर्रम का महीना उनके मातम में अपने हाथों अपना ही खून बहाने का नहीं,उनके बलिदान से प्रेरणा लेते हुए मनुष्यता,समानता,अमन,न्याय और अधिकार के लिए उठ खड़े होने का अवसर भी है!
हज़रत इमाम हुसैन और करबला का ज़िक्र रहती दुनिया तक ज़ुल्म के खिलाफ़ अपनी आवाज़ बलंद करता रहेगा।
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