उत्तर दक्षिण की शास्त्रीयता का समागम 'रंग यात्रा',मंच पर निखरा कथक, ओडिसी और भरतनाट्यम का सौंदर्य
लखनऊ, 23 जुलाई। शास्त्रीय नृत्य कथक, ओडिसी और भरतनाट्यम का लालित्य जहां 'रंगयात्रा' सुर लय ताल भरी प्रस्तुतियों में उभरा, वहीं ये पेशकश उत्तर दक्षिण की विविधता भरी संस्कृति की एकता की परिचायक बनी। स्वर इण्डिया एसोसिएशन रंगमण्डल द्वारा संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से यहां आदिलनगर कल्याणपुर के गुरुकुल हॉल में विविधता भरी अलग अलग रंगों की शास्त्रीय नृत्य प्रस्तुतियों पर आधारित इस कलात्मक सफर का प्रदर्शन स्वरूप सिंह के नृत्य निर्देशन और हेमचंद सिंह की परिकल्पना और निर्देशन में किया गया था।
सावन मास में गोस्वामी तुलसीदास कृत रुद्राष्टकम- नमामी शमीशान निर्वाण रूपम.... से रंगों भरी यात्रा की शुरुआत करते हुए कलाकारों रतन बहनों ईशा- मीशा, अंशिका, संगीता कश्यप व आकांक्षा पांडेय ने शिव की महिमा का बखान ओज में पगी तीव्र कथक गतियों में किया। कथक की अगली प्रस्तुति बिंददीन की ठुमरी रचना वे हटो छेड़ो न कन्हाई... में कृष्ण रूप में मीशा रतन और राधा के रूप में आकांक्षा पांडेय ने छेड़छाड़ के भावों के संग युगल मुद्राओं में चरित्रों को प्रभावी ढंग से जिया।
ओडिसी भाव भंगिमाओं में अर्धनारीश्वर अष्टकम की शिंजनी सोमवित की प्रस्तुति मोहक रही। रवि नागर द्वारा संगीतबद्ध तराना लेकर मंच पर आयी ईशा, रंजिनी, सुंदरम, अंशिका, संगीता, अनुभव, आरती ने कथक के लयात्मक अंग को उभारा। कार्यक्रम का अंत भरतनाट्यम की शास्त्रीयता से भरी मोनिका और स्निग्धा सरकार की कीर्तनम से हुआ।इससे पहले सुष्मित त्रिपाठी, शुभांकी सिंह और संगीता मिश्रा ने - बिछड़ के तुझसे किधर जाएंगे... , जाने क्या कर गया मुस्कुराना तेरा...., बरखा की बूंदों ने रास रचाया..., ए री मैं तो प्रेम दीवानी... जैसी सुगम रचनाओं के संग गजल- इश्क में गैरते जज़्बात.... कहीं। कार्यक्रम में तबले पर विकास मिश्र, आर्गन पर वीके सिंह, ड्रम पैड पर कृष्ण मोहन ने संगत की। परिधान संयोजन उमा फर्तियाल का रहा। अंत में गुरु सुरभि सिंह और कर्नल हर्षवर्धन ने कलाकारों को पुष्प देकर सम्मानित किया।
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