श्रीमद् भागवत कथा में हुआ ध्रुव उपाख्यान, नारद का आत्म तत्व व आत्म स्वरूप का प्रसंग
वीरेंद्र सिंह सेंगर
पंचनद धाम औरैया। जनपद के अति महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के पंचनद धाम क्षेत्र कु यमुना नदी तट पर स्थित ग्राम फरिहा के बीहड़ में स्थित मझकरा बाबा मंदिर पर चल रही श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन प्रवचन करते हुए यज्ञयुग प्रवर्तक जगद्गुरु आचार्य श्री सियाराम दास जी नैयायिक सर्वेश्वर माउंट आबू ने ध्रुव चरित्र, वामन अवतार, नारद स्वरूप और आत्म तत्व की कथा विस्तार से बताया। कथा का वाचन करते हुए जगद्गुरु ने कहा कि, भागवत कथा सुनना और भगवान को अपने मन में बसाने से व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन आता है। भगवान हमेशा अपने भक्त को पाना चाहता है। जितना भक्त भगवान के बिना अधूरा है उतना ही अधूरा भगवान भी भक्त के बिना है। भगवान ज्ञानी को नही अपितु भक्त को दर्शन देते हैं। और सच्चे मन से ही भगवान प्राप्त होता है। भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहते थे। उनके पिता हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानते थे। पुत्र को भगवान विष्णु की भक्ति करते देख उन्होंने उसे ही जान से मारने की ठान ली। प्रभु पर सच्ची निष्ठा और आस्था की वजह से हिरण्यकश्यप प्रह्लाद का कुछ भी अनिष्ट नहीं कर पाए। वामन अवतार के रूप में भगवान विष्णु ने राजा बलि को यह शिक्षा दी कि दंभ तथा अंहकार से जीवन में कुछ भी हासिल नहीं होता और यह भी बताया कि यह धनसंपदा क्षणभंगुर होती है। इसलिए इस जीवन में परोपकार करों। उन्होंने कहा कि अहंकार, गर्व, घृणा और ईर्ष्या से मुक्त होने पर ही मनुष्य को ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। यदि हम संसार में पूरी तरह मोहग्रस्त और लिप्त रहते हुए सांसारिक जीवन जीते है तो हमारी सारी भक्ति एक दिखावा ही रह जाएगी। कथा के दौरान कथा सुनने के लिए बड़ी संख्या में महिला- पुरूष पहुंचे। इस मौके पर विधिवत रूप से पूजा अर्चना करवाई गई।
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