भगवान श्रीकृष्ण ने सिखाया मित्र से बढ़कर कोई धर्म नही-राघवेंद्र कौशिक

कोंच (जालौन) उरई रोड स्थित ग्राम पडरी में श्रीमद्भागवत कथा में दिन मंगलवार को आखिरी दिन कथा वाचक राघवेंद्र कौशिक ने पारीक्षित लालजी निरंजन पत्नी गंगोत्री देवी और उनके सुपुत्र नाती राजा निरंजन की मोजूदगी में सुदामा चरित्र की कथा सुनाई जिसे सुन भक्त भाव बिभोर हो गए कथा का रसपान कराते हुए भागवताचार्य ने कहा कि संसार में बिना मित्र के सुख नही मिलता विपत्ति के समय में ही हमें सच्चे मित्र की पहचान होती है अगर आपके पास सच्चा मित्र है तो यह सब सुखो की खान है उन्होने सुदामा चरित्र की कथा सुनाते हुए कहा की मित्रता करनी है तो प्रभू से सीखे एक तरफ निर्धन ब्राह्मण और दूसरी तरफ त्रिलोकी राजा प्रभू ने जो मित्रता की मिसाल दी है वह अदभुत है जब सुदामाजी भगवान श्रीकृष्ण जी से मिलने के लिए संकोच करते हुए जैसे ही उनके महल में पहुंचे तो द्वार पालो ने श्री कृष्ण को बताया कि एक ब्राह्मण द्वार पर खडा है बो अपना नाम सुदामा बता रहा है तो इतनी बात सुनकर ही भगवान श्रीकृष्ण नंगे पैरों दौडे चले आऐ यह देख सभी हैरत में पड गये इस गरीब ब्राह्मण के लिए प्रभू ऐसे व्याकुल होकर दौडे चले आए प्रभू जी ने सुदामा जी को देखते ही अपने गले लगाया और आदर सत्कार के साथ उन्हें राज महल में ले गये और अपने सिंघासन पर बैठाकर उनका स्वागत सत्कार किया फिर उनका हाल चाल जाना सुदामा की पोटली को खोल कर देखा तो उसमें सिर्फ तीन मुठठी चावल निकला प्रभू ने तीन मुठठी चावल के बदले सुदामा जी को तीन लोक देने लगे यह देख रूकमणी जी ने भगवान से कहा हे प्रभु ये कैसा हिसाब है तीन मुठठी चावल के बदले तीन लोक दे रहे है तब प्रभू ने रूकमणी को समझाते हुए कहा मेरा तो हमेशा से ही सीधा हिसाब रहा है इस समय मेरे मित्र की पूर्ण सम्पति तीन मुठठी चावल है और वह मुझे देने में संकोच नहीं कर रहा तो फिर मुझे अपनी सम्पति देने में संकोच क्यों करूँ यह सुन रूकमणी जी बोली धंन्य है प्रभु आपन लीला आप ही जाने आप धन्य है इस अवसर छत्रसाल पटेल, दिलीप पटेल, कृष्ण कान्त पटेल, बृजेंद्र सिंह, चन्द्र प्रकाश पाठक,अशोक , रामप्रकाश निरंजन, राम कुमार, लाखन सिंह परिहार, रणजीत सिंह ,सहित तमाम स्रोतागण मौजूद रहे।
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