आधुनिकता की दौड़ में खो गया बचपन का खिलंदड़पन
संपादकीय - बचपन में हम सभी ने बच्चों के खेल खेले होंगे। जहां हम कुछ बचपन के खेल खेलने में माहिर रहे होंगे, वहीं हमे बचपन के कुछ खेल चिढ़ाने वाले भी सकते हैं। पर खेल चाहे जैसे भी थे, बचपन में खेले जाने वाले खेल हर किसी के दिल को करीब से छूते ही हैं। बचपन के वह खेल जिनमें हम कभी लड़ते थे, झगड़ते थे ,खीजते थे फिर भी रोज-रोज एक साथ होकर खेलते भी थे। कहा गया है कि "अतीत चाहे कितना भी दुखदाई क्यों ना रहा हो, उसकी स्मृतियां मधुर होती हैं।" आज बच्चों के खेल फोन, लैपटॉप व वीडियो गेम्स तक सिमट गए हैं। यह न उन्हें शारीरिक तौर पर आलसी बना रहे हैं, अपितु उनका सामाजिक स्तर भी कहीं न कहीं कमजोर करने में योगदान दे रहे हैं। वहीं, बचपन में खेले जाने वाले खेल अक्सर बच्चे के एक बड़े समूह के साथ गली-मोहल्ले से लेकर आंगन व छत तक खेले जाते थे। जिस वजह से वे एक-दूसरे के काफी करीब भी रहते थे। विकास के साथ परिवर्तन हर युग की परंपरा रही है लेकिन पिछले पांच दशक से विकास की गाड़ी जिस रफ्तार से दौड़ी उसने भारतीय ग्रामीण व छोटे नगरों के बच्चों का बचपन छीन कर उन्हें उनके खिलंदड़पन से वंचित कर दिया, जिसका परिणाम यह है कि आज का युवा अपने को स्वस्थ रखने के उपायों में निर्धारित शुल्क लेने वाली जिम अथवा घर पर स्वयं उपकरण लगाकर व्यायाम करते दिख रहे हैं ,जबकि आज के चार-पांच दशक पूर्व बच्चों को तंदुरुस्त रहने व उत्तम स्वास्थ्य की चिंता नहीं करनी पडती थी वह तो वाल्यजीवन में उनके मौज मस्ती में खेले जाने वाले नित्य खेलों से स्वतः प्राप्त हो जाता थी। नित्य प्रति बगैर योजना के किसी खाली मैदान में एकजुट हो मन मुताबिक विभिन्न प्रकार के खेल खेलते थे,उन खेलों को खेलने के लिए अधिक संसाधन जुटाने और बगैर कुछ धन खर्च किए खेला जाता था जिनमें अनेक खेल शामिल होते थे लेकिन आधुनिकता की भागम-भाग ने चार-पांच दशक पुराने स्वास्थवर्धक बचपन के खेलो को लगभग विलुप्त प्रायः कर दिया हैं।
बचपन के पुराने व मजेदार खेल के जो आज कुछ याद आ रहे है।जिन्हें याद करके भूले-बिसरे बचपन की स्मृतियों में बने रहने का मन करता है।
*लब्बो-डाल खेल*
लब्बो-डाल खेल बचपन में खेले जाने वाले खेल में से ही है। इस खेल में सभी खिलाड़ियों को पेड़ों पर चढ़ना होता है और जिस बच्चे की डेन बनाया जाता है, उसे पेड़ पर चढ़कर किसी खिलाड़ी को छूना होता है फिर जमीन पर लकड़ी को पकड़कर कर दूर फेंकना होता है। ऐसा करने पर जिस बच्चे को डेन वाले बच्चे ने छुआ होता है, अब उसको डेन बनाया जाता है।
*छुपन-छुपाई*
बचपन का यह खेल भी बड़ा आनंददायक होता था। इस खेल में जितने बच्चे शामिल होते थे, इस खेल का मजा उतना ही बढ़ जाता था। यही वजह है कि इस खेल को विद्यालय में खेले जाने वाले खेल या मैदान में खेले जाने वाले खेलों के नाम में भी शामिल किया जा सकता है। इसमें एक बच्चा डेन देता है और उसे टीम के बाकी छिपे हुए बच्चे को ढूंढना होता है।
*रस्सी कूदना*
बचपन का यह खेल न सिर्फ मजेदार होता था, बल्कि शारीरिक तौर पर लाभकारी था। रस्सी कूदना न सिर्फ शरीर के बैलेंस को बेहतर कर सकता है, बल्कि किसी चीज पर ध्यान लगाने की क्षमता को भी बेहतर कर सकता है। इस खेल को खेलने के लिए शरीर की फुर्ती चाहिए होती है।
*पोशंपा*
पोशंपा एक ऐसा खेल है, जिसे विद्यालय में खेले जाने वाले खेल या फिर बाहर खेले जाने वाले खेल के तौर पर जाना जाता है। इस खेल में दो बच्चे हाथ पकड़कर एक चेन बनाते हैं, फिर पोशंपा गीत “पोशंपा भई पोशंपा, लाल किले में क्या हुआ, सौ रुपए की घड़ी चुराई, अब तो जेल में जाना होगा, जेल की रोटी खाना होगा, जेल का पानी पीना होगा, अब तो जेल में आना होगा” गाते हैं। इस दौरान टीम के सभी बच्चों को एक-एक करके उस चेन के नीचे से गुजरना होता है। जिस बच्चे की बारी पर पोशंपा गाना खत्म हो जाता है, उसे गेम से आउट माना जाता है।
*गिल्ली डंडा*
मैदान में खेले जाने वाले खेलों के नाम में गिल्ली-डंडा एक प्रचलित खेल है। यह बच्चों का पसंदीदा आउटडोर गेम्स होता था। इसे खेलने के लिए लकड़ी के एक डंडे और लकड़ी की बनी छोटी गिल्ली की जरुरत होती है। फिर डंडे से गिल्ली को मार कर हवा में उछाला जाता है, फिर उसे गेंद की तरह हिट करके दूर फेंकना होता है।
*कंचे*
पुराने बच्चों के खेल में कंचे भी काफी प्रचलित था। बच्चे अक्सर इसे पार्क, मोहल्ले की गलियों और नुक्कड़ों पर खेला करते हैं। इसे हम एक तरह से स्मॉल टाउन गेम भी कह सकते हैं।जिसमे कांच की एक गोली से दूसरी गोली मे निशाना साधकर मारा जाता था।
*पहिया दौड़*
यह अकेले या टीम के साथ खेले जाने वाला सरल खेल था। इसमें बच्चा खिलाड़ी अपने घर की पुरानी साइकिल का पहिया लेकर बैलेंस बनाते हुए सड़क पर दौड़ता था जिसमें कुछ प्रतिस्पर्धी साथी भी अपना अपना साइकिल का पहिया लेकर साथ दौड़ते थे अथवा खिलाड़ी अकेले ही इस खेल को खेल सकता था।
*पिट्ठू (सितोलिया)*
पिट्ठू या सितोलिया भी बचपन में खेले जाने वाले खेल का ही हिस्सा था। इस खेल को बच्चे बिना थके-हारे पूरा दिन घर के बाहर खेलते रहते थे। इस खेल में पत्थरों के कई चपटे टुकड़ों से एक पिरामिड बनाया जाता था। फिर उसे गेंद से गिराकर खेला जाता था। इसे आज के दौरान में मैदान में खेले जाने वाले खेलों के नाम में शामिल किया जा सकता है।
*चोर-पुलिस*
बचपन में खेले जाने वाले खेल में एक और नाम है चोर-पुलिस। इसे घर के अंदर, स्कूल में, पार्क में या घर के बाहर कहीं भी खेला जाता था। पहले जहां बच्चे इस खेल को मैदान या गलियों में अपने हमउम्र दोस्तों के साथ खेला करते थें, वहीं, अब पेरेंट्स इस खेल को अपने बच्चे के साथ घर में ही अक्सर खेला करते हैं।
*पकड़म-पकड़ाई*
पकड़म-पकड़ाई भी एक अच्छा आउटडोर गेम था, जिसे खेलने में बच्चों को काफी मजा आता था। इसमें किसी एक बच्चे को खेल में शामिल अन्य बच्चों को पकड़ना होता है। डेन बना बच्चा सबसे पहले जिसको भी पकड़ता था, वो गेम के दूसरे राउंड में डेन बनता था।
*खो-खो*
खो-खो खेल विद्यालय में खेले जाने वाले खेल का सबसे बड़ा हिस्सा भी होता था। इसे बच्चे स्कूल में अक्सर खेल से जुड़े होने वाले टूर्नामेंट में भी खेला करते थे।
*क्रिकेट*
पुराने खेलो में नए रूप मे शामिल हुआ क्रिकेट अर्थ सम्पन्न परिवार के बच्चो का खेल था क्योकि बल्ला स्टाम्प व गेंद या क्रिकेट किट खरीदना हहर बच्चे के लिए संभव नही था और जिसके पास ये क्रिकेट खेलने का सामान होता था उसकी पूरी दादागीरी चलती थी।
*कबड्डी*
कबड्डी उत्तर भारत का एक लोकप्रिय खेल था और अभी भी है। इसे मैदान में खेले जाने वाले खेलों के नाम से भी जाना जाता है। इसमें बच्चों की दो टीम बनाई जाती है। फिर उन्हें सांस रोकते हुए एक-एक करके डेन बनाना पड़ता है।
*राजा मंत्री चोर सिपाही*
बच्चों के लिए इंडोर गेम्स के नाम में यह खेल भी शामिल था। इसे घर में छोटे बच्चे खेलना अक्सर पसंद करते थे। इसे खेलने के लिए चार बच्चों का समूह चाहिए होता है। फिर चार पर्चियों पर राजा, मंत्री, चोर, सिपाई लिख कर सभी को 20, 15, 10, 0 अंक दिया जाता था। सभी पर्चियों को एक साथ हवा में उछाला जाता था। फिर सभी बच्चों को एक-एक पर्ची उठानी होती थी और फिर पर्ची पर लिखा नंबर उन्हें मिलता है। ऐसा कई बार करते हैं फिर जिसे ज्यादा नंबर मिलता है, वो ही इस खेल का विजेता होता है।
*गुट्टे का खेल*
गुट्टे का खेल भी बचपन में खेले जाने वाले खेल में से एक था। इसे अधिकतर लड़कियां ही खेलती थी। इसे इसे खेलने के लिए गिट्टे या छोटे-छोटे पत्थर के टुकड़ों का इस्तेमाल किया जाता है। फिर हाथों के जरिए इसे हवा में उछालते हुए खेला जाता है। *स्टापू या लंगड़ी टांग*
स्टापू या लंगड़ी टांग महिला बच्चों के खेल में सबसे चहेता होता था। इस खेल को खेलने के लिए जमीन पर चौकोर आकार के कई खाने बनाए जाते थे। फिर टांग के जरिए एक-एक करके सारे खानों को पार करना होता है। इसी वजह से इसे लंगड़ी टांग भी कहा जाता है। इसे दो लोगों के साथ या दोस्तों के अथवा लडकियों के आपसी समूह में भी खेला जाता था।
*लूडो, सांप-सीढ़ी,व्यापार*
बच्चों के खेल में कमरे में बैठकर खेले जाने वाले खेल है। यह एक रोमांचक खेल है। इसे खेलने के लिए लूड़ो, सांप-सीढ़ी एवं व्यापार बने वाले कार्ड बोर्ड की जरूरत होती है। इसे दो खिलाड़ी से लेकर चार खिलाड़ी एक साथ खेल सकते हैं।
बचपन में खेले जाने बाले फुटबॉल,वालीवॉल,वैडमिंटन लम्बी कूंद,भाला फेंकना,गोला फैकना,तीरंदाजी,कुश्ती,तलवारवाजी,लट्टू फिरंगी आदि खेलों की एक लंबी श्रृंखला है जिन्हें बाहर मैदान में विद्यालयों में एवं घर में बैठकर टीम के साख खेला जाता था लेकिन आधुनिकता की दौड़ में कंप्यूटर और मोबाइल ने सामूहिक रूप से खेले जाने वाले इन खेलो को विलुप्तप्रायः कर दिया है । आज के बच्चे पूरे दिन कंप्यूटर अथवा मोबाइल में अकेले बैठकर खेल खेलते रहते हैं परिणाम स्वरूप उनमें टीम भावना की कमी के साथ सहनशक्ति का अभाव भी स्पष्ट दिखती है , बच्चे स्वेच्छाचारी व चिडचिडे हो रहे है। उनके स्वास्थ्य पर लगातार प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ रहा हैं,उनके मजबूत दिखने बाले शरीर में रोग प्रतिरोधी क्षमका नष्ट होती जा रही है। पचास साल या इससे अधिक उम्र के अभिभावकों को चाहिए कि वह बचपन में खेले हुए खेलो को अपने बच्चों व मोहल्ले के बच्चों को बताकर उनके प्रति प्रोत्साहित करें ताकि शारीरिक व्यायाम के साथ खेले जाने वाले खेलों के माध्यम से हम उन्हें तन मन स्वस्थ रखने व उनमे आपसी सौहार्द व मित्रता का स्थाई भाव स्थापित हो सके।
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