बिना प्रमाण मेडिकल स्टोर सीज, परिवार को बनाया बंधक

Feb 28, 2025 - 18:06
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बिना प्रमाण मेडिकल स्टोर सीज, परिवार को बनाया बंधक

अमित गुप्ता 

कदौरा जालौन 

कदौरा /जालौन नशीली दवाओं की बिक्री की सूचना पर प्रशासन ने मेडिकल स्टोर्स और आवासों पर छापा मारा, लेकिन कुछ न मिलने के बावजूद एक मेडिकल स्टोर को सीज कर दिया गया। इस कार्रवाई से अन्य मेडिकल संचालकों में हड़कंप मच गया, और वे अपनी दुकानों के शटर गिराकर भाग खड़े हुए।

शुक्रवार को ड्रग इंस्पेक्टर देवयानी दुबे, नायाब तहसीलदार तारा शुक्ला और स्थानीय पुलिस की संयुक्त टीम ने रामजानकी मंदिर स्थित सुशील मेडिकल स्टोर पर छापा मारा। 

एक घंटे की गहन तलाशी के बावजूद वहां कुछ नहीं मिला। इसके बाद टीम सुशील के आवास पर पहुंची और वहां भी जांच की, लेकिन कोई प्रतिबंधित दवा बरामद नहीं हुई।

इसके बावजूद टीम ने बस स्टॉप स्थित सुशील के भाई मंटू की दुकान पर छापा मारा। दो घंटे की तलाशी में वहां भी कुछ नहीं मिला। जब मंटू से लाइसेंस मांगा गया, तो उन्होंने बताया कि लाइसेंस का नवीनीकरण कराने के लिए काफी पहले आवेदन किया जा चुका है, लेकिन विभाग ने अब तक इसे नवीनीकृत नहीं किया। इसके बावजूद प्रशासन ने दुकान को सीज कर दिया।

छापेमारी के दौरान प्रशासन ने न केवल दुकान संचालकों को परेशान किया, बल्कि उनके परिवारों को भी नजरबंद कर दिया। महिलाओं और बच्चों को कार्यवाही के दौरान अंदर बंद रखा गया, न तो उन्हें किसी से फोन पर बात करने दी गई और न ही बाहर निकलने दिया गया।

इतना ही नहीं, छापेमारी के दौरान दवा लेने पहुंचे मरीजों और उनके तीमारदारों की भी तलाशी ली गई। इस कार्रवाई से मरीजों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, और नगर में इस घटनाक्रम को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं होती रहीं।

ड्रग इंस्पेक्टर देवयानी दुबे का कहना है,नशीली दवा बेचने की सूचना पर मेडिकल स्टोर व आवास पर छापा मारा गया था, लेकिन कुछ नहीं मिला। बस स्टॉप स्थित दुकान को लाइसेंस न होने के कारण सीज किया गया है, जिसे प्रपत्र दिखाने पर खोल दिया जाएगा।

इस पूरी घटना ने प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। बिना किसी ठोस प्रमाण के मेडिकल स्टोर पर छापा मारना, परिवार को नजरबंद करना और मरीजों को परेशान करना न केवल अधिकारों का दुरुपयोग है, बल्कि इसे कानूनी रूप से भी अनुचित ठहराया जा सकता है। मेडिकल स्टोर संचालकों का कहना है कि प्रशासन का यह रवैया उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित करने जैसा है।

क्या प्रशासन को किसी ठोस सबूत के बिना इस तरह की कार्यवाही करने का अधिकार है? क्या बिना वैध कारण के किसी परिवार को नजरबंद करना उचित है? इन सवालों के जवाब जनता और मेडिकल संचालकों को प्रशासन से चाहिए।

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