दिन में तीन स्वरूप बदलता है हरिशंकरी माता का विग्रह

रिपोर्ट विजय द्विवेदी
नदीगांव जालौन । जिला मुख्यालय उरई से 50 किलोमीटर दूर नगर पंचायत नदीगांव के पास प्रसिद्ध देवी हरिशंकरी माता का मंदिर चमत्कार एवं श्रद्धा का अद्भुत संगम है ।
जिला मुख्यालय उरई से लगभग 50 किलोमीटर पश्चिम में पहूज नदी जिसको पुराणों में पुष्पावती नाम से उल्लेखित किया गया है के तट पर नदीगांव नामक नगर पंचायत है , वैसे तो इस नगर की आबादी जनपद की कई ग्राम पंचायत से भी कम है लेकिन इसे नगर पंचायत का दर्जा मिलने से यहां के विकास को गति मिली है। नदीगांव नगर को जानने एवं उस पर लिखे जाने के लिए बहुत कुछ है जो एक बार में पूरा नहीं लिखा जा सकता प्रथम प्रयास में यहां की प्रसिद्ध देवी हरिशंकरी माता के बारे में जो अल्प जानकारी प्राप्त हुई है उसके अनुसार लगभग 168 वर्ष पूर्व वर्ष 1857 में दतिया राज्य के महाराजा विजय सिंह के निधन के उपरांत उनके ज्येष्ठ पुत्र युवराज भवानी सिंह ने राजगद्दी संभाली । यह अत्यंत वीर एवं बुद्धिमान राजा के रूप में वर्ष 1965 अर्थात 8 वर्ष तक स्वतंत्र शासक के रूप में राज्य किया तदुपरांत अंग्रेजों से संधि हो जाने के बाद राजा भवानी सिंह जूदेव बहादुर (सा) की उपाधि से विभूषित होकर वर्ष 1960 तक दतिया जैसे विशाल एवं समृद्धशाली राज्य के शासक रहे उनके दरबार में विभिन्न प्रकार की शारीरिक बौद्धिक क्षमता वाले अनेक दरबारी थे जो अकबर के नवरत्न से भी अधिक बुद्धिमान एवं शक्तिशाली बताए जाते हैं इन्हीं में एक बलशाली दरबारी हरिवंश सिंह परिहार थे जिन्हें राय साहब की उपाधि के कारण स्थानीय लोग हरिवंश राय नाम से जानते हैं। हरिवंश राय बैरागढ़ शारदा माता के अनन्य भक्त व साधक थे, बताते हैं कि एक बार शारदा मां ने हरवंश राय को स्वप्न दिया कि मुझे बैरागढ़ से ले जाकर नदीगांव पुष्पावती नदी के किनारे जहां शमशान घाट हो वहां स्थापित करो लेकिन माता ने शर्त रखी कि जहां पर मुझे पहला विश्राम दे दोगे मैं वहीं ठहर जाऊंगी । शारदा मां की आज्ञा पाकर हरिवंश राय ने नदीगांव में पुष्पावती नदी के तट पर भव्य मंदिर का निर्माण करवाया एवं बैरागढ़ से शारदा माता को लेकर आए और नदी के तट पर निर्मित हो रहे मंदिर से लगभग 500 मी दूर उन्हे तीव्र लघु शंका लगी तो उन्होंने माता के विग्रह को वहीं जंगल में आसपास की भूमि से थोड़े ऊंचे स्थान पर रख दिया , लघु शंका से निवृत होने के बाद पवित्र होकर जब उन्होंने मां के विग्रह को उठाना चाहा तो फिर वह इस स्थान से नहीं उठी प्रणाम स्वरूप मां की विग्रह को यही सुनसान जंगल में विराजमान करवाना पड़ा। हरिवंश राय के द्वारा मूर्ति को यहां लाकर स्थापित करने मंदिर एवं कुआं का निर्माण करवाने के कारण इन्हें हरिशंकरी माता के नाम से जाना जाता है। स्थानीय लोग बताते हैं कि देवी के अनन्य भक्त हरिवंश राय पर शारदा माता की बड़ी कृपा थी। किंवदंती है कि एक बार एक शास्त्र व्यापारी ने दतिया दरबार में तलवार के वार से बचने वाली ढ़ाल की बहुत प्रशंसा की, राजा भवानी सिंह ने हरिवंश राय से ढ़ाल का परीक्षण करने को कहा तो उन्होंने एक वार में ही सात ढ़ालों को हाथ से पकड़ कर फाड़ दिया , इस किस में कितनी सच्चाई है यह तो उस समय के प्रत्यक्षदर्शी लोग बता सकते थे । मृत्योप्रान्त हरिवंश राय की समाधि लगभग 2 किलोमीटर दूर मगरौल गटैया ड़ांग में बनाई गई है जिन्हें सिद्ध बाबा के नाम से पूजा जाता है । मान्यता है कि समाधि मंदिर पर पूजा अर्चना के बाद समाधि के सात बार चक्कर लगाकर सिद्ध बाबा से जो कामना की जाती है वह पूरी होती है एवं यहां अनेक बीमारियों के निदान के लिए भी आसपास के लोग सिद्ध बाबा की पूजा कर मनौती मानते हैं।
अद्भुत है हरिशंकरी माता
नदीगांव स्थित किला से लगभग 600 मीटर दूर जंगल के बीच हरिशंकरी माता का प्राचीन मंदिर है, जहां देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकृति ने अपने सुघड़ हाथों से यहां की निर्जन जंगली भूमि को स्वयं सौंदर्यता प्रदान की हो । बहुत छोटी मठिया में हरिशंकरी माता विराजमान है जिन पर सिंदूर का चोला चढ़ाया जाता है। मुझे लगता है कि शायद ही किसी देवी मूर्ति पर सिंदूर का चोला चढ़ाया जाता हो। मंदिर की पुजारी चंद्रपाल बाबा ने बताया कि यह विग्रह दिन में तीन बार स्वयं स्वरूप बदलता है। नदीगांव निवासी भानु प्रताप सिंह परिहार,त्रिलोक सिंह,उत्तम सिंह, रचनानंद सरस्वती बाबा जी, गजेंद्र सिंह, कल्लू पंडा आदि के द्वारा यहां के बारे में एक से एक अनेक चमत्कारिक किस्से सुनने को मिले जिन पर विश्वास कर पाना भले ही सहज ना हो लेकिन इस स्थान पर पहुंचने के बाद यह आवश्य प्रतीत होता है कि कोई अद्भुत दैवीय शक्ति इस सन्नाटे में विराजमान है । यहां ए श्रद्धालुओं के पेयजल की व्यवस्था के लिए स्वयं जमीन के नीचे से पानी का स्रोत फूट पड़ा है जिसे स्थानीय लोगों ने प्लास्टिक का पाइप लगाकर छोटे से बोरिंग जैसा स्वरूप दे दिया है जबकि यह बोरिंग नहीं स्वयं प्रकट हुआ जल स्रोत है।
ब्लॉक प्रमुख ने करवाया विकास
वैसे तो हरिशंकरी माता मंदिर जंगल में है लेकिन वर्तमान ब्लाक प्रमुख अभिमन्यु सिंह उर्फ डिंपल इस मंदिर तक जाने के रास्ते से लेकर सत्संग भवन कथा पंडाल के लिए दो टीन सेड, रास्ते में टीन सैड ,इंटरलॉकिंग सहित मंदिर के आसपास तमाम ऐसे सुविधाजनक कार्य कराए हैं जिससे वहां जंगल में मंगल हो गया है।
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