चौथे चंबल लिटरेरी फेस्टिवल का पोस्टर जारी, पचनद पर होगा तीन दिवसीय आयोजन

Oct 30, 2023 - 16:10
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चौथे चंबल लिटरेरी फेस्टिवल का पोस्टर जारी, पचनद पर होगा तीन दिवसीय आयोजन

वीरेंद्र सिंह सेंगर 

 पंचनद धाम औरैया: चंबल साहित्य उत्सव के चौथे संस्करण का आयोजन पंचनदा विशाल जलराशि तट पर किया जा रहा है। चंबल की खोई पहचान उभारने के लिए चंबल साहित्य उत्सव का आयोजन 2020 से होता रहा है। चंबल साहित्य उत्सव का चौथा संस्करण आगामी 16-18 फरवरी 2024 को आयोजित होने जा रहा है। सीएलएफ का इस बार का आयोजन चंबल घाटी के बीहड़ों के बीचों-बीच होगा। चंबल, यमुना, सिंध, पहुंज और क्वारी पांच नदियों के विशाल और अनोखे संगम पर अंचल के साहित्यकारों का महाकुंभ लगेगा। इसमें शामिल होने के लिए सभी को खुला निमंत्रण है।

चंबल अंचल में साहित्य की एक धारदार परंपरा रही है। साहित्य की इसी धरोहर से प्रेरणा लेते हुए चंबल के बिखरे साहित्य को दस्तावेजीकरण कर समाज के सामने उजागर का यह प्रयास है। साथ ही चंबल और देश-दुनिया के साहित्यकारों के बीच एक सेतु का निर्माण करना भी इस आयोजन का मकसद है। इन्हीं उद्देश्यों के साथ रविवार 29 अक्टूबर को चौथे चंबल लिटरेरी फेस्टिवल का पोस्टर जारी कर दिया गया। इस दौरान डॉ. शाह आलम राना, खालिद नाईक, अजय कुमार, डॉ. कमल कुमार कुशवाहा, सौरभ अवस्थी, कपिल तिवारी, कुलदीप परिहार, आदिल खान, शशिकांत दुबे, देवेन्द्र सिंह परिहार आदि उपस्थित रहे।

चंबल साहित्य उत्सव पांच नदियों के महासंगम पर ऐतिहासिक मंच बनाकर आयोजित किया जा रहा है। जिसमें पुस्तक प्रदर्शनी, पुस्तक विमोचन, पुस्तक समीक्षा, साहित्यिक व सामाजिक परिचर्चाएं, सांस्कृतिक कार्यक्रम, साक्षात्कार, लघुकथा, शोधपत्र, ओपन माईक, कवि सम्मेलन, फोटो प्रदर्शनी, सेंड आर्ट, हैरिटेज वॉक आदि आयोजित किए जा रहे हैं। स्थानीय स्तर पर उभरती और गुमनाम प्रतिभाओं को मंच प्रदान किया जाएगा।

चंबल साहित्य उत्सव के चौथे संस्करण का विस्तृत कार्यक्रम की रूपरेखा

16,17,18 फरवरी 2024 को पंचनद पर होगा एतिहासिक आयोजन

*पहला दिन

16 फरवरी, पहला दिन(शुक्रवार)

सुबह 10 बजे उद्घाटन समारोह

पंचनदः कल, आज और कल पर चर्चा

1-2pm भोजनावकाश

2-4pm साहित्य में बीहड़ और बीहड़ में साहित्य

4-5pm चाय ब्रेक

5-7pm सांस्कृतिक कार्यक्रम

*दूसरा दिन

17 फरवरी (शनिवार) दूसरा दिन

10am-1pm स्वाभाविक सौंदर्य का पर्याय चंबल

1-2pm भोजनावकाश

2-4pm चंबल का सामाजिक तानाबाना

5-8pm सांस्कृतिक कार्यक्रम

*तीसरा दिन

18 फरवरी, 

सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे तक - चंबल हैरिटेज वॉक 

बीहड़ सफारी: चंबल संग्रहालय से चंबल आश्रम तक, जगम्मनपुर फोर्ट 

समापन समारोह 

*स्वतंत्रता संग्राम और चंबल अंचल से जुड़ी पुस्तकों, दस्तावेजों, पत्र-पत्रिकाओं, प्राचीन सिक्कों, पत्रों, लोक संस्कृति से जुड़ी दुर्लभ सामग्री की प्रदर्शनी।

*पंचनद के रेतीले तट पर सेंड आर्ट प्रदर्शनी 

*घाटी के छायाकारों के द्वारा खिंची गई तस्वीरों की प्रदर्शनी

चंबल लिटरेरी फेस्टिवल के आयोजकों में से डॉ. शाह आलम राना ने बताया कि चंबल एक धारा नही बल्कि विचारधारा है। बगावत और बलिदान की। महजनपद काल में इस धरा ने द्रोपदी की बगावत को देखा। तब पहली बार यहां चंबल के किनारे चमड़ा सुखाने की परंपरा बंद कराया गया। शायद यह पर्यावरण बचाने का आदि संदेश था। मध्यकाल में भी दिल्ली की सत्ता कभी इस इलाके को काबू में नहीं रख सकीं। दिल्ली के बगावती तब चंबल के बीहड़ों में शरण लेते। फिर तो यहां के बीहड़ बगावत का एक सिलसिला ही बन गए। आजादी आंदोलन में अंग्रेजों को सबसे बड़ी चुनौती चंबल के इलाकों में इसी रवायत के चलते मिली। व्यक्तिगत उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ भी बगावत की अभिव्यक्ति चंबल में जारी रही। बंदूक उठाकर बीहड़ कूदना और जालिमों को मटियामेट करने का मुहावरा बन गया। 955 किमी लंबी चंबल नदी के साथ दौड़ते बीहड़ों और जंगलों में क्रांतिकारियों, ठगों, बागियों-डाकुओं के न जाने कितने किस्से दफ्न हैं।

डॉ.. शाह आलम राना ने कहा कि चंबल घाटी के साकारात्मक पहलुओं पर कम और नाकारात्मक पहलुओं पर ज्यादा लिखा-पढ़ा गया है जिससे चंबल की छवि को गहरा धक्का लगा है। विश्व धरोहर चंबल घाटी का दाग मिटाने के लिए ‘चंबल लिटरेरी फेस्टिवल’ की नींव रखी गई। उत्तर भारत के मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान तक विस्तृत चंबल के बीहड़ों का संघर्षमय अतीत बरसों से सृजनधर्मियों को आंदोलित करता रहा है। यह क्षेत्र और यहां की नदियां, तट और उनका रजत-मृदुल सिकता कैनवस पर उकेरी जाने वाली कल्पनाओं की तरह चित्रमय और भावमय बनाने को सहज ही उकसाती है। यह चंबल की धरती जो मानवता के पक्ष में खड़े होने और विद्रोह की प्रेरक बनती आई है। आजादी के दौर में भी चंबल क्षेत्र ने शोषणकारी ताकतों से लोहा लेने की संस्कृति को विकसित किया था। यमुना-चंबल क्षेत्र के रणबांकुरे हमेशा से ही अपने तेवरों के साथ मोर्चों पर डटे रहे हैं। यही नहीं, साहित्य सृजन की भावभूमि पर छंद और लय का आनंद और अनुशासन और नई कविता की प्रखरता यहाँ की साहित्य परंपराओं की अपनी विशिष्ट थाती कही जा सकती है।

चंबल साहित्य उत्सव के जरिये चंबल की रंग छटा, दृश्यात्मक विविधता, भूमि स्रोत, प्राकृतिक वैभव, खग-विहग का संगीत कलरव, नदी जल की कल कल, पर्यावरण धरोहर, ऐतिहासिक थातियां, लोकगीतों की बहुआयामी अर्थवत्ता और जन भाषा के मुहावरे एक अलग ही समां बांधते हैं और मन को हर्षाते हैं साथ ही तन को पुलकित भी करते हैं। चंबल की धरा जिंदगी को खूबसूरत बनाने का बहुआयामी मुहावरा है। चंबल के रंग, तरंग, उल्लास और संघर्षों की कितनी ही छवियों को रचनाकारों ने विस्तार दिया है। चंबल की वादियों में मिट्टी के स्पर्श को उकसाते पहाड़ों, भूतल के स्पर्श की तरंगे पैदा करते भरकों के बीच, खेत-खलिहानों और मचानों के बीच सुदूर रेतीली रश्मियों तक तमाम कहानियां-कविताएं बिखरी हुई मिल जाती हैं जो लोगों को ऊर्जा और सरसता से भर देती हैं।

डॉ. शाह आलम राना समेत आयोजन समिति में शामिल सभी लोगों ने अपील की कि चंबल घाटी के विकास और समृद्ध पहचान बनाने के इच्छुक सभी लोगों, साहित्य प्रेमियों, छात्रों, शोधार्थियों अथवा जिनकी भी इस आयोजन में दिलचस्पी है, उन्हें चंबल लिटरेरी फेस्टिवल में शामिल होने का खुला आमंत्रण है।

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