पंचनद मेला महोत्सव 14 नवंबर से ,संगम स्नान पर्व 15 को
रिपोर्ट -विजय द्विवेदी
जगम्मनपुर, जालौन। उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध एवं विश्व में पांच नदियों के एकमात्र स्थल स्थल पंचनद पर सदियों से होने वाला कार्तिक पूर्णिमा का स्नान 15 नवंबर को प्रातः 4.16 बजे से शाम 5.46 तक पुनीत माना जाएगा। विश्व में पांच नदियों का यह एकमात्र संगम स्थल उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड के जनपद जालौन अंतर्गत रामपुरा थाना क्षेत्र के जगम्मनपुर कंजौसा में है, वैसे तो वर्षभर स्नान करने का अवसर भाग्यशाली लोगों को मिलता है किंतु यहां प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान करना अत्यंत पुनीत माना जाता है । ऐसी मान्यता है कि पंचनद के पवित्र जल में स्नान करने से प्राणी को जरावस्था (वृद्घावस्था) की पीड़ा से नहीं गुजरना पड़ता है और अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है । इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा का स्नान 15 नवंबर शुक्रवार को प्रातः 4.16 बजे से प्रारंभ होगा जो पूरे दिन देरशाम तक चलता रहेगा । स्नान मेला के पूर्व 14 नवंबर से पंचनद संगम का आठ दिवसीय मेला प्रारंभ हो जाएगा जो 21 नवंबर तक गुलजार रहेगा। अनुमान लगाया जाता है कि पूर्णिमा के दिन पूरे दिन लगभग 50 हजार श्रद्धालु पंचनद के पवित्र जल में स्नान करेंगे तदुपरांत जितने दिन मेला चलेगा प्रति रोज श्रद्धालु अल्पसंख्या में लगातार स्नान करते रहेंगे। जनपद जालौन के एकमात्र इस प्राचीन स्नान मेला मे आने वाले श्रद्धालुओं को सुरक्षा व सुविधा हेतु जिलाधिकारी जालौन राजेश कुमार पांडे के निर्देशन में बेहतरीन प्रबंध किए जा रहे है। जिलाधिकारी जालौन राजेश कुमार पांडे एवं सुरक्षा व्यवस्था हेतु पुलिस अधीक्षक जालौन डॉ दुर्गेश कुमार ने स्वयं पंचनद संगम का स्थलीय निरीक्षण कर उपजिलाधिकारी माधौगढ़ सुरेश कुमार पाल एवं क्षेत्राधिकारी माधौगढ़ रामसिंह ,थाना प्रभारी संजीव कुमार कटियार सहित अन्य अधीनस्थो को आवश्यक प्रबंध करने के निर्देश दिए हैं। परिणामस्वरूप उप जिलाधिकारी माधौगढ़ सुरेश कुमार पाल अपनी निगेहवानी में स्नान घाट एवं नदी तट तक पहुंचाने के रास्ते सुदृढ कराए जा रहे हैं।
*विश्व की अद्भुत तपोस्थली पंचनद संगम*
'पंचनद' यह नाम स्वयं ही अपने स्वरूप को प्राकट्य कर देता है पंच अर्थात पांच , नद अर्थात नदियां, जहां पांच सदानीरा सरितायें अलग-अलग दिशाओं से प्रवाहित होती हुई एक स्थान पर मिलती हो उसे पंचनद कहते हैं । विभिन्न ग्रन्थों व पुराणों में पंचनद स्थल के अनेक आख्यान है। लेकिन दुर्गम वनों के बीच जहां आवागमन के साधन न हो पाने के कारण इतिहास वेत्ता अथवा धर्म स्थलों की खोज करके उनका वर्णन करने वाले लेखकों के लिए यह स्थान भौगोलिक दृष्टि से अछूता रहा किंतु धार्मिक अथवा विभिन्न घटनाओं की दृष्टि से यह स्थल अनेक पुराणों , धार्मिक ग्रंथों का हिस्सा अवश्य बना रहा। कौतूहल का विषय यह है कि यह अद्भुत संगम पंचनद आखिर कहां पर है जिसे विभिन्न ग्रंथों में स्थान दिया गया।
*पंचनद परिचय*
उत्तर प्रदेश के जालौन जनपद का वह अनूठा स्थल जहां विभिन्न राज्यों की धरा को तृप्त करते हुए पांच नदियां आपस में आलिंगनवद्ध हो विश्व का अद्वितीय संगम बनाती हैं । यहां सूर्य तनया तथा मृत्यु के देवता यमराज की सहोदरा पतित पावनी यमुना में समाहित चर्मण्वती (चंबल) , सिंध, कुवांरी, पहूज नदियां अपना अस्तित्व विलीन कर यमुनामयी हो जाती हैं यह स्थल पवित्र स्थल यदि जनपद जालौन के हिस्से को दे दिया जाए तो अन्याय होगा क्योंकि यह सदानीरा पांच नदियों का संगम तीन जनपद जालौन इटावा औरैया की सीमा का भी संगम स्थल है वही मध्य प्रदेश के भिंड जिले का थोड़ा सा भूभाग भी इस संगम का हिस्सेदार है । बुंदेलखंड के उरई मुख्यालय से 65 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में तथा इटावा से 55 किलोमीटर दक्षिण पूर्व एवं औरैया से 45 किलोमीटर पश्चिम दक्षिण में स्थित प्राकृतिक सौन्दर्यता से परिपूर्ण अद्भुत स्थल अनेक ऐतिहासिक पौराणिक मंदिरों का रमणीक स्थल है । कल-कल करती नदियों की सुमधुर ध्वनि, पवित्र वनो की सुगंधित वायु एवं तीर्थ क्षेत्र में हरि गान करते महात्मा , वन में कुटीर बनाकर साधनारत साधु सन्यासी, हरे-भरे जंगल के मध्य स्वच्छन्द विचरण करते असंख्य वन्य जीव , संगम के जल में अटखेलियां करते जल जन्तु , कलरव करते स्थानीय तथा प्रवासी पक्षी अनायास ही किसी का मन मोह लेते हैं । पंचनद संगम के आग्नेय
दिशा तट पर बना प्राचीन मठ वर्तमान में सिद्ध संत श्री मुकुंद वन (बाबा साहब महाराज) की तपोस्थली के रूप में विख्यात है। विभिन्न प्रमाणों के आधार पर श्री मुकुंदवन वन संप्रदाय के नागा साधु थे, अपनी पीढ़ी के 19 में महंत के रूप में वह पंचनद मठ पर तपस्यारत थे , उनकी कीर्ति सुनकर रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी विक्रमी संवत 1660 अर्थात सन् 1603 में पंचनद पर पधारे और दोनों संतो की मिलन के उपरांत गुसाई जी जगम्मनपुर के राजा उदोतशाह के आग्रह पर जगम्मनपुर पहुंचे एवं निर्माणाधीन किला की देहरी का रोपण कर राजा को भगवान शालिग्राम ,दाहिनावर्ती शंख , एक मुखी रुद्राक्ष भेंट किया जो आज भी जगम्मनपुर राजमहल में सुरक्षित एवं पूजित है किंतु पंचनद का महत्व सिर्फ इतना ही नहीं श्रीमद् देवी भागवत पुराण के पंचम स्कंध के अध्याय 2 मॆ श्लोक क्रमांक 18 से 22 तक पंचनद का आख्यान आया है जिसमें महिषासुर के पिता रम्भ तथा चाचा करम्भ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पंचनद पर आकर तपस्या की । करम्भ ने पंचनद के पवित्र जल में बैठकर अनेक वर्ष तक तप किया तो रम्भ ने दूध वाले वृक्ष के नीचे पंचाग्नि का सेवन किया । इंद्र ने ग्राह्य (मगरमच्छ) का रूप धारण कर तपस्यारत करम्भ का वध कर दिया। द्वापर युग में महाभारत युद्ध के दौरान पंचनद के निवासियों ने दुर्योधन की सेना का पक्ष लिया था महाभारत पुराण में पंचनद का उल्लेख है....
*कृत्सनं पंचनद चैव तथैव वामरपर्वतम्।*
*उत्तर ज्योतिष चैव तथा दिव्यकटं पुरम्।।*
महाभारत युद्ध समाप्ति के बाद पांडू पुत्र नकुल ने पंचनद क्षेत्र पर आक्रमण कर यहां के निवासियों पर विजय प्राप्त की थी.....
*तत: पंचनद गत्वा नियतो नियताशन:।*
महाभारत वन पर्व में पंचनद को तीर्थ क्षेत्र होने की मान्यता सिद्ध होती है। विष्णु पुराण में भी पंचनद का विवरण मिलता है जिसमें भगवान श्री कृष्ण के स्वर्गारोहण व द्वारका के समुद्र में डूब जाने के उपरान्त अर्जुन द्वारा द्वारका वासियों को पंचनद क्षेत्र में बसाए जाने का उल्लेख है....
*पार्थ: पंचनदे देशे वहु धान्यधनान्विते ।*
*चकारवासं सर्वस्य जनस्य मुनि सन्तम् ।।*
अन्य पुराणों एवं धर्म ग्रंथों से प्रमाणित होता है कि पंचनद पर स्थित सिद्ध आश्रम एक दो हजार वर्ष पुराना नहीं अपितु वैदिक काल का तपोस्थल है अथर्ववेद के रचयिता महर्षि अथर्ववन ने पंचनद के तट पर अथर्ववेद की रचना की । महर्षि अथर्ववन वंश की पुत्री वाटिका के साथ भगवान श्री कृष्ण द्वैपायन (व्यास जी) का विवाह हुआ माना जाता है जिनसे भगवान शुकदेव जी की उत्पत्ति हुई। कुरु राजा धृष्टराष्ट्र व गंगापुत्र भीष्म की सहायता से श्री कृष्ण द्वैपायन व्यास जी ने पंचनद पर एक विराट यज्ञ एवं धर्म सभा का आयोजन किया था महर्षि अथर्ववन के काल से ही पंचनद स्थित आश्रम पर आज वन संप्रदाय के ऋषि निवास करते हैं। जो उक्त कथन की पुष्टि करते है।
पंचनद संगम तट पर इटावा की सीमा में स्थित विराट मंदिर में प्राचीन शिव विग्रह है। शिव महापुराण के अनुसार भारत के 108 शिव विग्रहों में पंचनद पर गिरीश्वर महादेव पूजित हैं । द्वापर में भगवान श्री कृष्ण द्वारा कालिया नाग को समुद्र जाने की आज्ञा देने पर गोकुल से समुद्र जाने के रास्ते में कालिया नाग द्वारा दीर्घकाल तक पंचनद धाम पर रुककर भगवान शिव जी पूजा अर्चना करने के कारण गिरीश्वर महादेव को कालीश्वर कालांतर में कालेश्वर के नाम से जाना जाने लगा। पंचनद के कालेश्वर महादेव के मंदिर के आसपास आज भी सर्प के विष का हरण करने वाली वनस्पति बहुतायत मात्रा में उपलब्ध है जिसे सर्प पकड़ने वाले नाथ संप्रदाय के साधु पहचान कर उखाड़ ले जाते हैं । पंचनद का कालेश्वर मंदिर पांडू पुत्र महावली भीम , दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान, ग्वालियर राज्य के महाराजा सिंधिया तथा आसपास राजाओं के द्वारा इसे समय समय पर संरक्षित किया जाता रहा है।
प्रतिवर्ष कार्तिक की पूर्णिमा पर लगता है विराट मेला* पंचनद तीर्थ स्थल पर यूं तो वर्ष भर श्रद्धालुओं व सैलानियों का आवागमन रहता है किंतु प्रतिवर्ष कार्तिक की पूर्णिमा पर यहां विराट मेला लगता है, मान्यता है कि यह मेला लगभग 1000 वर्ष पुराना है इस दिन यहां आसपास के आसपास के जनपदों से हजारों श्रद्धालु पंचनद के पवित्र जल में डुबकी लगाकर अपना जीवन धन्य करते हैं , कहा जाता है जो यमुना नहाए उसे यम ना सताए अर्थात जो यमुना के जल में स्नान करता है उसे यमलोक में प्रताडित नहीं किया जाता है। यह मेला लगभग 8 से 10 दिन तक चलता है। ग्रामीण मेला होने के कारण इसमें आधुनिकता अभी तक प्रवेश नहीं कर पाई है इस कारण इसकी अनुपम छटा दर्शनीय होती है । आने वाले श्रद्धालु तक तपोनिष्ठ सिद्ध संत श्री मुकुंदवन जी (बाबासाहव महाराज) के चरणों में पान प्रसाद चढ़ा कर अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं ।
चमत्कार" नहीं होती है ओलावृष्टि
पंचनद स्थित श्री मुकुंदमन बाबा साहब के मंदिर आश्रम के भोजन अन्य व्यवस्था संचालन के लिए क्षेत्र के जितने गांव से फसल के उत्पादन का दशांश पहुंचता है उतने क्षेत्र में ओलावृष्टि नहीं होती है इस कारण से लोगों के मन में पंचनद व यहां के सिद्ध संतो के प्रति अगाध श्रद्धा है।
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