पुत्र की दीर्घायु के लिए महिलाओं ने रखा हर छठ का ब्रत

कोंच (जालौन) हरछठ ब्रत को ललही छठ के नाम से भी जाना जाता है यह ब्रत महिलाएं अपने पुत्रों की दीर्घायु के लिए रखती है और सिर्फ भैंस का दूध और बगैर जोता बखरा भोजन में खातीं हैं एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक ग्वालिन के बच्चा होने बाला था और वह प्रसव सम्बंधित परेशानियों से ब्याकुल थी वहीं गोरस दूध दही बेचने जाना भी था जैसे ही मटकी लेकर बेचने के लिए चली तो रास्ते में प्रसव पीड़ा शुरू हो गयी जहां पर झरवेरी की ओट में उसने एक बच्चे को जन्म दिया और उसे छोड़कर दूध दही बेचने को चली गयी उस दिन हरषष्ठी का ब्रत था और ग्वालिन ने गाय भैंस के मिश्रत दूध को केवल भैंस का दूध बताकर बेच दिया दूसरी तरफ झरवेरी के पास एक किसान हल जोत रहा था और बैलों के भड़क उठने से हल का फल बच्चे के शरीर में लगने से उसकी मृत्यु हो गयी जैसे ही किसान ने देखा तो उसने झरवेरी के कांटों से बच्चे के पेट मे टांके लगाए और उसे छोड़कर चला गया जब ग्वालिन बच्चे के पास आई तो बच्चे को देखकर वह सोचने लगी कि मेरे झूठ बोलकर बेचे गए दूध के कारण स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट हुआ है जिसकी सजा मुझे मिली है तब उसने प्राश्चित करते हुए ग्राम में लौटकर ग्रामवासियों को बातें बतायीं जिसके बाद स्त्रियों ने उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया आशीर्वाद लेकर जब ग्वालिन झरवेरी के पास पहुंची तो उसका पुत्र जीवित मिला इसी कारण महिलाएं इस दिन सिर्फ भैंस का दूध व बगैर जोता बखरा अनाज व फल फूल खाकर ब्रत का पालन करतीं है इसी मान्यता के चलते नगर व क्षेत्र में दिन गुरुबार को भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की षष्टी को इस ब्रत को रखा और हरछठ माता की विधि विधान से पूजन अर्चन करती हुई अपने पुत्रों की दुर्घायु की कामना की।
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