परंपरागत तरीके से जल में विसर्जित की गयीं भुजरियां
कोंच(जालौन) बुंदेलखंड की लोक परम्पराओं में शामिल भुजरियां विसर्जन का कार्यक्रम गुरुवार को धनुताल भुजरया ताल पहाड़गांव चुंगी नहर घाट आदि स्थानों पर परंपरागत तरीके से सम्पन्न किया गया कन्याओं व महिलाओं ने तालाब नहर घाट आदि स्थानों पर जाकर भुजरियां विसर्जित की
रक्षा बंधन पर्व पर भुजरियों का विसर्जन परंपरा बुंदेलखंड में दशकों से होती आ रही है कन्याएं व महिलाएं भुजरियां लेकर मंगल गीत गाती हुईं उन्हें जल में प्रवाहित करती हैं बुंदेलखंड की इस लोक परम्परा के बारे में प्रचलित है कि चंदेल काल में राजा पृथ्वीराज चौहान ने जब महोबा पर आक्रमण किया था तब आल्हा और उनके भाई उदल महोबा में नही थे रक्षाबंधन के दिन राजा पृथ्वीराज की सेना ने महोबा को घेर रखा था इस कारण रानी मल्हना भुजरियों का विसर्जन नहीं कर पाई थी अगले दिन जब आल्हा उदल आये तब उन्होंने पृथ्वीराज को युद्ध कर हराया जिसके बाद भुजरियों का विसर्जन रानी कर सकी थीं इसलिए इस पर्व को बुंदेलखंड की लोक परम्पराओं में बासी भुजरियां भी कहा जाता है।
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