महा शिवरात्रि विशेष... गल भुजंग भस्म अंग शंकर अनुरागी

Mar 8, 2024 - 19:01
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महा शिवरात्रि विशेष...  गल भुजंग भस्म अंग शंकर अनुरागी

मनोज तिवारी ब्यूरो चीफ अयोध्या

अयोध्या आज भंगड भिक्षुक यानी भगवान शिव का विवाह है। हम उनके बाराती है।आज जश्न होगा। उत्सव और आनंद होगा। दुनिया की सबसे बड़ी ‘वेडिंग सेरिमनी होगी।सबसे लम्बा चलना वाला वैवाहिक कार्यक्रम ,सबसे ज़्यादा शामिल होने वाले लोग, सबसे ज़्यादा जगहों पर होने वाला रिसेप्शन।बिना किसी इंवेट मैनेजमेंट कम्पनी के यही महाशिवरात्रि की ताक़त है। शिव बरात में भी समतामूलक समाज का प्रतिनिधित्व। भूत,पिशाच, पागल, नंगे, भिखारी, नचनिया, बजनिया, लूले , लंगड़े, नशेडी, शराबी , कबाबी सब। अकेला त्यौहार जो कश्मीर में 'हेराथ' से लेकर रामेश्वरम् तक एक साथ मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारम्भ भी इसी दिन से हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ। ख़ास बात थी बेटे ने बाप की बारात का नेतृत्व किया। गणेश बारात के आगे आगे चले। बेटा बाप को ब्याहने चला।बनारस की शिव बारात अनोखी होती है। बरसों मैं इसमें शामिल होता रहा। इस अनोखी और अड़भंगी शिव बारात ने इतिहास रचा। आप कह सकते हैं कि बारात की मौजूदा प्रथा का श्रीगणेश इसी दिन हुआ।दूसरे विवाह में गणेश जी की सर्वप्रथम द्वारपूजा अनिवार्य हुई।तीसरे- राज शासन में बूढ़े लोगों को दूसरी शादी करने का अधिकार मिला। चौथा बैल की प्रतिष्ठा हुई। बैल सत्ता का निशान बना। इन्ही परम्पराओं से शिव की बारात अमर हो गयी। मैं बरसों तक बनारस में निकलने वाली शिव बारात का बराती रहा हूँ।जीवन भी शिव बारात जैसा ही चल रहा है। रक़म रक़म के लोग है। कभी कभी लगता है पूरा जीवन ही शिव बारात है।शिव पहले गुरू है जिनसे ज्ञान उपजा। वह सुंदर भी है और वीभत्स भी। आदियोगी भी हैं आदि गुरू भी। शिव से ही सब जन्मता है और उसी में सब समाता है।देव और दानव दोनों उनके उपासक है। वे रक्षक भी हैं और विनाशक भी। वे कल्पना भी है और वास्तविकता भी। वे अर्धनारीश्वर होकर भी काम पर विजेता हैं। गृहस्थ होकर भी परम विरक्त हैं। नीलकंठ होकर भी विष से अलिप्त हैं। उग्र होते हैं तो तांडव, नहीं तो सौम्यता से भरे भोला भंडारी। परम क्रोधी पर दयासिंधु भी शिव ही हैं। विषधर नाग और शीतल चंद्रमा दोनों उनके आभूषण हैं। उनके पास चंद्रमा का अमृत है और सागर का विष भी। वे योगी भी हैं और अघोरी भी। ऐसा योगी साधना से उठ कर आज भोग की तरफ़ जायगा। उन्होंने काम को जलाया है। पर सृष्टि के कल्याण के लिए वे विवाह को राज़ी है।इसलिए शिवरात्रि जागृति की रात है।

बचपन में पूरा घर शिवरात्रि के उपवास पर रहता था। हम बच्चे थे उपवास कैसे हो? पर हम उपवास की ज़िद करते थे।तभी मॉं ने जुगत निकाली तुम बाराती हो। शिव के बाराती सब खा पी सकते है। इसलिए तब से हम खा पीकर उपवास करते हैं। क्यों कि हम बचपन से शिव के बाराती है।अवढरदानी, भूतभावन,गंगाधर, शशिधर, विरूपाक्ष, अकेले ऐसे देवता है जो पूरे देश के हर कोने में पूजे जाते हैं और सभी उनके विवाह का ये उत्सव मानते हैं। भगवान् शिव और पार्वती के विवाह का ये उत्सव बसंत पंचमी के दिन से ही शुरू हो जाता है, उस दिन बाबा का तिलकोत्सव होता है। उसके बाद शिवरात्रि के दिन उनका विवाह होता है जिसकी बरात की शोभा भी उनके भक्त गण अतुलनीय बना देते हैं। विवाह के बाद माँ पार्वती रस्म के हिसाब से अपने मायके चली जाती है। और जब बाबा उनका गौना कराकर उन्हें कैलाश लाते है तो वो दिन रंगभरी एकादशी का होता है और उसी रोज़ से बाबा विश्वनाथ अपने भक्तो से जमकर रंगारंग होली खेलते है।

शिव देवताओं के ज़बर्दस्त दबाव में इस विवाह के लिए राज़ी होते हैं। यज्ञकुण्ड में पहली पत्नी के जल कर मरने के बाद शिव लंबे समय तक उनके शोक में पागल रहे। उन्होंने कैलास का आश्रम उजाड़ दिया श्मशान में ही धूनी रमाने लगे। वहीं भूत प्रेतों से संग साथ हुआ।’बिन घरनी घर भूत क डेरा’ के माहौल में औघड दानी ने दीन दुनिया से लगभग वैराग्य ले लिया। देवलोक परेशान शिव को इस अवस्था से कैसे बाहर निकाला जाय। देवताओं ने शिव से विवाह का निवेदन किया। राय बनी की कि शिव का दुबारा विवाह हो। शिव ने मना किया ढलती उम्र में विवाह। जगहँसाई होगी।तब रास्ता निकला कि अगर कोई कन्या खुद शिव से विवाह के लिए तपस्या करें तो शिव क्या करेगें। वही हुआ कुबेर ने नारद को समझाया। ऐसे मौक़ों पर नारद ही काम आते थे। नारद ने हिमालय के घर आई कन्या को आशुतोष का महत्व समझाया। पार्वती अन्न जल छोड़ शिव के लिए तप करने लगी। विवाह तय हुआ।पार्वती शिव की हो गयी। बारात में जाने के लिए सब देवता अपने-अपने वाहन और विमान को सजाने लगे,अप्सराएँ गाने लगीं। शिवजी के गण उनका श्रृंगार करने लगे। जटाओं का मुकुट बनाकर उस पर साँपों का मौर सजाया गया। शिवजी ने साँपों के ही कुंडल और कंकण पहने, शरीर पर विभूति रमायी और वस्त्र की जगह बाघम्बर लपेट लिया। शिव के माथे पर चन्द्रमा, सिर पर गंगा, तीन नेत्र, साँपों का जनेऊ, गले में विष और छाती पर नरमुण्डों की माला थी।वेष अशुभ होने पर भी वे कल्याण के धाम लग रहे थे। उनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में डमरू था।शिव बैल पर चढ़कर बारात में चले। बाजे बज रहे हैं। शिवजी को देखकर देवांगनाएँ मुस्कुरा रही हैं कि इस वर के योग्य दुलहिन संसार में नहीं मिलेगी।बारात मे अप्सराओं ने भरत नाट्यम पेश किया। डाकिनियों ने लोकनृत्य। धूम धाम के साथ बारात हिमालय के दरवाज़े पर पंहुची। सास वर के परछावन के लिए दरवाज़े पर आयी।पर यह क्या ? वर के सिर पर सॉंप का मौर, गले में मुण्डमाल, कटि पर कड़कड़ा चर्म, हाथ में डमरू त्रिशूल देख सास के हाथ से स्वागत की थाली गिर गयी।सभी स्त्रियां भाग गई। पार्वती की मॉं गिरते पड़ते घर मे जा नारद के सात पुश्तोंका शाब्दिक अभिषेक ( गरियाने) करने लगी।रामचरितमानस के बालकांड में शिवजी के विवाह का वर्णन है।विवाह वैदिक रीति से हुआ।पर्वतराज हिमाचल ने हाथ में कुश लेकर तथा कन्या का हाथ पकड़कर उन्हें भवानी जानकर शिवजी को समर्पण किया। जब महेश्वर ने पार्वती का पाणिग्रहण किया, तब देवता बमबम हुए ।मुनिगणों ने मंत्रों का पाठ किया। शिव का यह रूप ही उनके विवाह में अड़चन था।कोई भी माता या पिता किसी भूखे, नंगे, मतवाले से बेटी ब्याहने की इजाजत कैसे देगें।शिव की बारात में नंग-धड़ंग, चीखते, चिल्लाते, पागल, भूत-प्रेत, मतवाले सब थे।लोग बारात देख भागने लगे। शिव की बारात ही लोक में उनकी व्याप्ति की मिसाल है।उत्तर में कैलास से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम् तक शिव एक जैसे पूजे जाते हैं। इस व्यापक आधार की मिसाल है उनकी बारात। समाज के भद्रलोक से लेकर शोषित, वंचित, भिखारी तक उन्हें अपना मानते हैं। बारात उन्हें सर्वहारा के देवता साबित करती है। इतने व्यापक दायरे वाले शिव ज्ञान के स्तोत्र भी हैं और मुक्ति के भी।विपरीत ध्रुवों और विषम परिस्थितियों से अद्भुत सामंजस्य बिठानेवाला उनसे बड़ा कोई दूसरा भगवान् नहीं है। मसलन, यानी शिव विलक्षण समन्वयक हैं।

साँप, सिंह, मोर, बैल, सब आपस का बैर-भाव भुला समभाव से उनके सामने है। वे समाजवादी व्यवस्था के पोषक। वे सिर्फ संहारक नहीं कल्याणकारी, मंगलकर्ता भी हैं।शिव गुट निरपेक्ष हैं। सुर और असुर दोनों का उनमें विश्वास है।राम और रावण दोनों उनके उपासक हैं। दोनों गुटों पर उनकी समान कृपा है। आपस में युद्ध से पहले दोनों पक्ष उन्हीं को पूजते हैं। लोक कल्याण के लिए वे हलाहल पीते हैं। वे डमरू बजाएँ तो प्रलय होता है, प्रलयंकारी इसी डमरू से संस्कृत व्याकरण के चौदह सूत्र भी निकलते हैं। इन्हीं माहेश्वर सूत्रों से दुनिया की कई दूसरी भाषाओं का जन्म हुआ।

शिव का व्यक्तित्व विशाल है।वे काल से परे महाकाल है।सर्वव्यापी हैं, सर्वग्राही हैं।सिर्फ भक्तों के नहीं देवताओं के भी संकटमोचक हैं। उनके ‘ट्रबल शूटर’ हैं। शिव का पक्ष सत्य का पक्ष है। उनके निर्णय लोकमंगल के हित में होते हैं। जीवन के परम रहस्य को जानने के लिए शिव के इन रूपों को समझना जरूरी होगा, क्योंकि शिव उस आम आदमी की पहुँच में हैं, जिसके पास मात्र एक लोटा जल है। इसीलिए उत्तर में कैलास से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम् तक उनकी व्याप्ति और श्रद्धा एक सी है.शिव को समझने का मतलब है सृष्टि की विराट, उदार और समन्वय दृष्टि को समझना। शिव विराट नर्तक हैं। आज वे नाचेगें। गायेगें। उल्लास मनाएगें। प्रकृति का हर अंश नृत्य में झूमेगा।देवाधिदेव महादेव नाचते हुए देवता है। शिव के साथ उनके गण भी नाचते हैं। शिवगण असाधारण है। तुलसी कहते हैं कोई “मुखहीन विपुल मुख काहू।”ऐसे रुद्र, अंगीरागुरु, अंतक, अंडधर, अंबरीश, अकंप, अक्षतवीर्य, अक्षमाली, अघोर, अचलेश्वर, अजातारि, अज्ञेय, अतीन्द्रिय, अत्रि, अनघ, अनिरुद्ध, अनेकलोचन, अपानिधि, अभिराम, अभीरु, अभदन, अमृतेश्वर, अमोघ, अरिदम, अरिष्टनेमि, अर्धेश्वर, अर्धनारीश्वर, अर्हत, अष्टमूर्ति, अस्थिमाली, आत्रेय, आशुतोष, इंदुभूषण, इंदुशेखर, इकंग, ईशान, ईश्वर, उन्मत्तवेष, उमाकांत, उमानाथ, उमेश, उमापति, उरगभूषण, ऊर्ध्वरेता, ऋतुध्वज, एकनयन, एकपाद, एकलिंग, एकाक्ष, कपालपाणि, कमंडलुधर, कलाधर, कल्पवृक्ष, कामरिपु, कामारि, कामेश्वर, कालकंठ, कालभैरव, काशीनाथ, कृत्तिवासा, केदारनाथ, कैलाशनाथ, क्रतुध्वसी, क्षमाचार, गंगाधर, गणनाथ, गणेश्वर, गरलधर, गिरिजापति, गिरीश, गोनर्द, चंद्रेश्वर, चंद्रमौलि, चीरवासा, जगदीश, जटाधर, जटाशंकर, जमदग्नि, ज्योतिर्मय, तरस्वी, तारकेश्वर, तीव्रानंद, त्रिचक्षु, त्रिधामा, त्रिपुरारि, त्रियंबक, त्रिलोकेश, त्र्यंबक, दक्षारि, नंदिकेश्वर, नंदीश्वर, नटराज, नटेश्वर, नागभूषण, निरंजन, नीलकंठ, नीरज, परमेश्वर, पूर्णेश्वर, पिनाकपाणि, पिंगलाक्ष, पुरंदर, पशुपतिनाथ, प्रथमेश्वर, प्रभाकर, प्रलयंकर, भोलेनाथ, बैजनाथ, भगाली, भद्र, भस्मशायी, भालचंद्र, भुवनेश, भूतनाथ, भूतमहेश्वर, भोलानाथ, मंगलेश, महाकांत, महाकाल, महादेव, महारुद्र, महार्णव, महालिंग, महेश, महेश्वर, मृत्युंजय, यजंत, योगेश्वर, लोहिताश्व, विधेश, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, विषकंठ, विषपायी, वृषकेतु, वैद्यनाथ, शशांक, शेखर, शशिधर, शारंगपाणि, शिवशंभु, सतीश, सर्वलोकेश्वर, सर्वेश्वर, सहस्रभुज, साँब, सारंग, सिद्धनाथ, सिद्धीश्वर, सुदर्शन, सुरर्षभ, सुरेश, सोम, सृत्वा, हर-हर महादेव, हरिशर, हिरण्य, हुत, हम सबका कल्याण करे।

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