भगवान श्री कृष्ण की रासलीला को देखने के लिए भोले बाबा ने किया था गोपी का रूप धारण।

ब्यूरो चीफ अखिलेश कुमार
ऐंधा /जालौन डकोर ब्लॉक के ग्राम पंचायत ऐंधा में स्थित श्री लोधेश्वर महादेव पर आयोजित सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के पांचवे दिन कथावाचक ने श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया। मौके पर सैकड़ों की संख्या में महिला-पुरुष श्रीकृष्ण की लीलाओं का श्रवण करने के लिए मौजूद रहे लोग। वहीं अपनी ज्ञान रस से लोगों को भक्तिमय बनाने के लिए कथावाचक पं० श्री हरिहर नारायण शास्त्री श्रीकृष्ण की रासलीला का वर्णन करते हुए लोगों को बताया कि कृष्ण की रासलीला से मोहित हजारों की संख्या में गोपियां हमेशा कृष्ण के आसपास मंडराती रहती थी।
कथावाचक ने बताया कि जब वृंदावन में श्रीकृष्ण और राधारानी के साथ बांसुरी बजाकर रासलीला कर रहे थे, तब उसे सुनकर भोले बाबा भी रासलीला में जाने के लिए बेचैन हो गए थे। रासलीला में गोपियों के अलावा पुरूषों का प्रवेश वर्जित था। तब महादेव के सामने समस्या उत्पन्न हो गई कि वह रासलीला में कृष्ण और राधा के साथ नृत्य कैसे करें। तभी व नारी का रूप धारण करने के लिए यमुना जी के पास गए। यमुना जी ने शिवजी को नारी के रूप में तैयार कर दिया। त्रिपुरारि सज धज कर माथे पर घूंघट लेकर रासलीला में शामिल हो गए थे। किन्तु भगवान श्रीकृष्ण समझ गए कि भोले बाबा गोपी के रूप में आए हुए हैं।
रासलीला के लिए भगवान शंकर बने गोपी, मिला गोपेश्वर नाम
रासलीला में कृष्ण की बांसुरी और गोपियों का आनंद देखकर महाशिव भी खुद को नहीं रोक पाए उसका हिस्सा बनने के लिए उन्होंने गोपी रूप धारण कर लिया
रासलीला, जिसके बारे में सभी ने सिर्फ सुना है, कृष्ण के सिवा वहां किसी और पुरुष की उपस्थिति मान्य नहीं थी मगर इसका हिस्सा बनने के लिए भस्म से श्रृंगार करने वाले भोला भंडारी भी खुद को नहीं रोक सके. कृष्ण प्रेम में शंकर ने गोपी का भेष धारण कर लिया और सुध-बुध खोकर जमकर थिरके, मगर कृष्ण ने उन्हें पहचान लिया और शिव के गोपी स्वरूप को गोपेश्वर नाम दिया।
कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव कैलाश पर्वत पर ध्यान में मगन थे, उन्हें ध्यान में असीम आनंद महसूस हो रहा था. दूसरी ओर कृष्ण की बांसुरी की तान पर गोपियां रासलीला कर रही थी. शिवजी को आभास हुआ कि उन्हें आनन्द की अनुभूति उसकी बांसुरी की धुन से मिल रही है, जिस पर गोपियां थिरक रही हैं।
शिव से रहा नहीं गया तो वे भी रासलीला का हिस्सा बनने के लिए वृन्दावन खिंचे चले गए, यहां जैसे ही शिव प्रवेश करने लगे तो नदियों की देवी वृन प्रकट हुईं, उन्होंने शिवजी को रोक दिया. वृन देवी ने शिवजी को बताया कि रासलीला में कृष्ण के अतिरिक्त कोई पुरुष शामिल नहीं हो सकता।
यकीनन शिव के लिए यह विचित्र स्थिति थी, क्योंकि शिव को पुरुष का प्रतीक माना जाता है. शिव दुविधा में पड़ गए, इधर गुजरते समय के साथ रासलीला चरम पर पहुंच रही थी. शिव समय बर्बाद नहीं करना चाहते थे और गोपी का भेष धारण करने को तैयार हो गए,घूंघट लेकर रासलीला का हिस्सा बनने के लिए चल दिए, वहां कृष्ण बांसुरी की तान पर वह इतने मस्त हो गए कि अपनी सुधबुध खो बैठे, नृत्य करते वक्त सिर से पल्लू हट गया, शिवजी को देखकर राधा और गोपियों डर गईं, लेकिन कृष्ण मुस्कुराने लगे,
कृष्ण ने शिव का राज सभी को बताया और शिव को रास का हिस्सा बनने के लिए धन्यवाद दिया, शिवजी ने कहा कि महारास का हिस्सा बन धन्य तो मैं हुआ, दिल करता है कि हमेशा के लिए यहीं रह जाऊं, इस पर कृष्ण ने शिव को गोपेश्वर नाम दिया, इसलिए आज भी शिव के गोपी स्वरूप की पूजा वृंदावन के गोपेश्वर या गोपीनाथ मंदिर में की जाती है, यही कहनी सुनकर महिला व पुरुष नृत्य करने लगे।
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