मोहर्रम का चांद दिखते ही इमाम चौकों में सजने लगी मजलिसे

अमित गुप्ता
कालपी जालौन धर्म नगरी कालपी के विख्यात दारुल उलूम गौसिया मजीदिया मदरसा के प्रबन्धक हाफिज इरशाद अशरफी ने बताया कि इस्लामी साल का ये पहला महीना है जिसे मुहर्रम उल हराम के नाम से जाना जाता है। हमारा इस्लामी साल शुरु भी कुर्बानी से होता है और खत्म भी कुर्बानी पर होता है। यानी साल का पहला महीना 10 मोहर्रम शरीफ को मैदाने कर्बला में इस्लाम के शहीदों ने अपनी कुर्बानी पेश की। साल के आखिरी महीने बकरीद में भी 10 तारीख को कुर्बानी पेश की गई।
उन्होंने बताया कि अल्लाह का बड़ा एहसान करम है कि उसने हम लोगों को मोहर्रम जैसा महान महीना अता फरमाया हजरत इमाम हुसैन ने अपने नाना मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के दीन को बचाने की खातिर अपने साथ सब घर वालों को व साथियों को दीने मुहम्मदी की राह में मैदाने कर्बला में अपनी जानों को कुर्बान कर दिया और उन्होंने ये पैगाम दे दिया कि कभी भी बातिल(जुल्म करने वाले)के आगे झुकना नहीं हक की राह में लड़ते रहना चाहिए।
दारुल उलूम के प्रिंसिपल मुफ़्ती तारिक बरकाती ने कहा कि कर्बला वालों की शहादत को हम लोगों को चाहिए कि ऐसे मनाए जो इस्लाम व शरीयत के खिलाफ ना होने पाए। 9 व 10 मोहर्रम को रोजा रखो और 10 मोहर्रम को नमाज़ आशूरा पढ़ो जो सूरज निकलने के बाद से सूरज के डूबने तक किसी भी वक्त पढ़ सकते हैं।तकिया मस्जिद के इमाम हाजी मुजीब अल्लामा ने कहा कि इमाम हुसैन की याद में खूब फातिहा करें और लोगों को लंगरे हुसैनी खिलाए तमाम फ़ुज़ूल कामों से परहेज़ करें वो काम करना चाहिए जिससे इस्लाम की शान और अजमत बुलंद नजर आए।
इसी क्रम में मोहर्रम के चांद दिखते ही मजलिसो का दौर शुरू हो गया।
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