करवाचौथ व्रत 01 नवम्बर बुधवार को,शुभ मुहूर्त में करें करवाचौथ व्रत का पूजन

Oct 31, 2023 - 10:10
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करवाचौथ व्रत 01 नवम्बर बुधवार को,शुभ मुहूर्त में करें करवाचौथ व्रत का पूजन

इस वर्ष करवा चौथ व्रत का उद्यापन भी कर सकते हैं

 

व्यूरो के के श्रीवास्तव जालौन 

उरई जालौन करवाचौथ का व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है इस विषय में ज्योतिषाचार्य श्री प्रशान्ताचार्य जी महाराज ने बताया कि सनातन धर्म में व्रत,पर्वो एवं त्योहारों की मान्यता बहुत अधिक है। इस वर्ष करवाचौथ का व्रत 01 नवम्बर बुधवार को है करवाचौथ का उपवास सुहागन स्त्रियों के लिए बहुत अधिक विशेष महत्व रखता है। इस दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं और उनका गृहस्थ जीवन सुखध रहे इसके लिए व्रत करती हैं। पूरे भारत में इस त्योहार को धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन उत्तर भारत खासकर जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा,राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश आदि में तो इस त्योहार की अलग ही रौनक देखने को मिलती है। चांद देखने के बाद ही महिलाएं अपना व्रत खोलती हैं। इस दिन कुंवारी कन्याएं भी व्रत रखती हैं और जिनकी सगाई हो गई हो।

महंत रोहित शास्त्री ने बताया सुहागिन महिलायें अपने सुहाग की रक्षा के लिए उपवास रखने के बाद आसमान के चमकते चांद का दिदार कर अपने पति के हाथों से निवाला खाकर अपना उपवास खोलती हैं। करवाचौथ का व्रत सुबह सूर्योदय से पहले ही 4 बजे के बाद शुरु हो जाता है और रात को चंद्रदर्शन के बाद ही व्रत को खोला जाता है। इस दिन श्रीगणेश,भगवान शिव,माता पार्वती,स्वामी कार्तिकेय और चंद्रदेव की पूजा अर्चना की जाती है और करवाचौथ व्रत की कथा सुनी जाती है। सामान्यत: विवाह के बाद 12 या 16 साल तक लगातार इस उपवास को किया जाता है लेकिन इच्छानुसार जीवनभर भी विवाहिताएं इस व्रत को रख सकती हैं। अपने पति की लंबी उम्र के लिये इससे श्रेष्ठ कोई उपवास अथवा व्रत आदि नहीं है। इस दिन महिलाएं श्रृंगार करके पूजा करने जाती हैं और फिर आकर घर के बड़ों का आशीर्वाद लेती हैं। महिलाओं में ये त्योहार बहुत ही प्रचलित होता है।

करवा चौथ पूजन का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है

पंचांग के अनुसार इस वर्ष कार्तिक माह कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का 31 अक्टूबर मंगलवार को रात्रि 09 बजकर 31 मिनट पर शरू होगी। चतुर्थी तिथि का समापन अगले दिन 01 नवम्बर बुधवार को रात्रि 09 बजकर 20 मिनट पर हो रहा है।सूर्योदय व्यापिनी कार्तिक मास के कृष्ण चतुर्थी तिथि 01 नवम्बर बुधवार को प्राप्त हो रही है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार करवा चौथ का व्रत 01 नवम्बर बुधवार को रखा जाएगा।

करवा चौथ पूजन शुभ मुहूर्त

01 नवम्बर बुधवार शाम 6 बजकर 05 मिनट से उसी शाम 7 बजकर 05 मिनट के बीच करवाचौथ का पूजन करना सबसे कल्याणकारी होगा।

चंद्र दर्शन का समय इस प्रकार है 

जम्मू में 01 नवम्बर बुधवार को चंद्र दर्शन रात करीब 8 बजकर 12 मिनट पर होंगे।

करवा चौथ व्रत कैसे शुरू करें

करवा चौथ व्रत के दिन व्रती सुबह जल्दी उठ कर शुद्ध जल से स्नान करें घर में पूजा स्थान या घर में कोई पवित्र स्थान में गंगाजल का अभिषेक कर के शुद्ध आसन पर बैठ कर आत्म पूजा कर, यह संकल्प करें ” मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये” संकल्प बोलकर करवा चौथ के व्रत को शुरू करे।

पूजन के बाद क्या करें

इस दिन सुबह उषाकाल पूजन कर सबसे पहले कुछ खाना तथा पीना चाहिए। जम्मू कश्मीर में उषाकाल से पहले सरगी में फैनी,कतलमे, नारियल, दूध, रबड़ी, मीठी कचौरी का खाने प्रचलन है। इस मिश्रण के सेवन से पूरे दिन बिना पानी पीये रहने में मदद मिलती है। 

करवा चौथ पूजन व्रत विधि 

01 नवम्बर बुधवार शाम 06 बजकर 05 मिनट से 07 बजकर 05 मिनट के बीच दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें,नहीं तो आज कल मार्किट से भी चित्र मिलते हैं। आठ पूरियों की अठावरी बनाएं। मीठा और साथ में अलग-अलग तरह के पकवान बनाये,गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं,बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी मैया का श्रृंगार करें,जल से भरा हुआ लोटा रखें करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें रोली से करवा पर स्वास्तिक बनाएं श्री गणेश, भगवान शिव,माता पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, और चंद्रदेव और चित्रितकरवा की विधि अनुसार पूजा करें।

पति की लंबी आयु की कामना करें और इस मंत्र का जाप करे ”ऊॅ नम: शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥”

‘ॐ शिवायै नमः‘ से पार्वती का, ‘ॐ नमः शिवाय‘ से शिव का, ‘ॐ षण्मुखाय नमः‘ से स्वामी कार्तिकेय का, ‘ॐ गणेशाय नमः‘ से गणेश का तथा ‘ॐ सोमाय नमः‘ से चंद्रमा का पूजन करें।

करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा खुद करें या सुनें कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपने सास ससुर सभी बड़ो का आशीर्वाद ले और करवा उन्हें दे दे,तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा अलग रख लें रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें यानि उन्हें जल चढ़ाये और उनकी लंबी आयु की कामना करे और जिंदगी भर आपका साथ बना रहे इसकी कामना करे इसके बाद पति के पैरों को छुए और उन से आशीर्वाद लें और उनके हाथ से जल पीएं उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें। धर्मग्रंथों के अनुसार पति के हाथों जल ग्रहण करके व्रत का पारण करें। पारण से ही व्रत पूरा होता है।

करवा चौथ की पूजन सामग्री इस प्रकार है

शुद्ध मिट्टी, चॉदी, सोने या पीतल आदि किसी भी धातु का टोंटीदार करवा व ढक्कन,देसी घी का दीपक, रुई गेहूँ, शक्कर या बूरा, हल्दी, पानी का लोटा, कुमकुम, शहद, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, धूप,अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, नारियल,मेंहदी, मिठाई, गंगाजल, चंदन, चावल, सिन्दूर, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, हलुआ, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी,फूल माला श्रद्धा स्वरुप दान के लिए दक्षिणा।

इस दिन महिलाओं को सोलह सिंगार करना चाहिए वह इस प्रकार हैं 

इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं। सोलह श्रृंगार में माथे पर लंबी सिंदूर अवश्य हो क्योंकि यह पति की लंबी उम्र का प्रतीक है। मंगलसूत्र, मांग टीका, बिंदिया ,काजल, नथनी, कर्णफूल, मेहंदी, कंगन, लाल रंग की चुनरी, बिछिया, पायल, कमरबंद, अंगूठी, बाजूबंद और गजरा ये 16 श्रृंगार में आते हैं।

यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक लगातार हर वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं। 

करवा चौथ व्रत कथा 

महाभारत काल माना जाता है। इसी व्रत के प्रभाव से पाण्डव विजयी हुए। द्रौपदी का सौभाग्य सुरक्षित रहा। सर्वप्रथम इस व्रत को श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को बताया था। महाभारत काल में एकबार अर्जुन नीलगिरी पर्वत पर तपस्या करने गए। द्रौपदी ने सोचा कि यहां हर समय जीव-जंतु सहित विघ्न-बाधाएं रहती हैं। उसके शमन के लिए अर्जुन तो यहां नहीं हैं। यह सोचकर द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया और अपने कष्टों का निवारण पूछा। उन्होंने करवाचौथ के बारे द्रौपदी को बताया था । करवाचौथ की और भी कथाएं है।

जो महिलाएं पहले से ही हृदय रोग,सुगर,बीपी व अन्य बीमारी से पीड़ित हैं,उन्हें अपने डॉक्टर की सलाह लेकर ही व्रत रखना चाहिए अगर स्वयं निर्णय लेकर व्रत रखती है तो उनकी सेहत पर बुरा असर पड सकता है 

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