रामलला का प्राण प्रतिष्ठा के दिन होगा पंचनद तीर्थ के जल से जलाभिषेक
वीरेंद्र सिंह सेंगर
जगम्मनपुर (जालौन) संपूर्ण देश में जैसे-जैसे अयोध्या धाम में निर्मित मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तिथि नज़दीक आती जा रही है वैसे-वैसे ही 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के पहले उन्हें समूचे देश की नदियों के जल से स्नान कराने के लिये रामभक्त नदियों पर पहुंचकर कलश में जल भरकर अयोध्या धाम पहुंचाने की जिम्मेदारी का निर्वहन करने में जुट गये हैं।
इसीक्रम में शुक्रवार को भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं कानपुर बुंदेलखंड क्षेत्र के क्षेत्रीय संयोजक पं. रामलखन औदिच्य के नेतृत्व में भाजपा जिलाध्यक्ष उर्विजा दीक्षित, सत्यम जिला प्रचारक, डा. अखंड सिंह, शत्रुघन सिंह, विजय द्विवेदी, राजकुमार द्विवेदी, पवन शीरोठिया एडवोकेट, योगेश शाक्यवार सहित अनेकों नेता व कार्यकर्ताओं का कारवां जिला मुख्यालय से जगम्मनपुर से पवित्र पांच नदियों यमुना-चंबल, सिंध पहूज और क्वांरी के पवित्र महासंगम पंचनद धाम तीर्थ पहुंचा जहां जय श्रीराम के गगनभेदी नारों के साथ कलश में पंचनद तीर्थ का जल भरा गया, जिसे पं. रामलखन औदिच्य के नेतृत्व में 22 जनवरी के पहले अयोध्या धाम पहुंचाये जाने का सभी रामभक्तों ने संकल्प लिया।
बताया जाता है कि रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के पहले रामलला को देश की सभी पवित्र नदियों के पवित्र जल से जलाभिषेक किया जायेगा, देश के संत समाज में इस धार्मिक पौराणिक और एतिहासिक पंचनद तीर्थ क्षेत्र का बड़ा महत्व है, यह स्थान विश्व में इकलौता है जहां पवित्र पांच नदियों यमुना-चंबल सिंध पहूज और क्वांरी का संगम होता है जिसमें पंचनद धाम को महासंगम के साथ इसे तीर्थराज के नाम से भी जाना जात है, जिसका वर्णन बृम्हपुराण में तीर्थस्थलों में वर्णित है, कार्तिक पूर्णिमा पर देश के कोने कोने से यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। शाम ढलने के साथ ही यहां का नज़ारा काफी खूबसूरत हो जाता है। वैसे तो पंचनद को लेकर कई किवदंतियां हैं लेकिन उनमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि महाभारत काल में पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दिनों में यहीं पंचनद के आसपास ही समय व्यतीत किया और भीम ने इसी स्थान पर बकासुर का वध किया था तथा महाकालेश्वर की स्थापना की जो आज भी प्रसिद्ध प्राचीन धार्मिक पौराणिक महत्व के रूप में प्रसिद्ध है।
सबसे महत्वपूर्ण:-
बताते हैं कि रामायण के रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास जी ने ली थी यमुना की धारा से एक ऋषि की परीक्षा।
इस महासंगम पंचनद तीर्थ से जुड़ी एक और भी कहानी प्रचलित है, यहां के लोगों का मानना है कि यहां के ऋषि मुकुंदवन की यशस्वी गाथा सुनकर एक बार तुलसीदास जी ने उनकी परीक्षा लेने की ठानी। तुलसी दीस जी इस जगह पर जलमार्ग से आए और नदी की धारा में आसन पर बैठकर पानी पिलाने के लिए आवाज लगाई। तब ऋषि मुकुंदवन ने अपने कमण्डल नदी में अपनी अलौकिक खड़ाऊं के द्वारा नदी में पहुंचकर कमण्डल से जो जल छोड़ा वह कभी खत्म नहीं हुआ और तुलसीदास जी को ऋषि मुकुंदवन के प्रताप को स्वीकार करना पड़ा और वह उनके सामने नतमस्तक हो गए, तथा उसी क्षण उनके साथ उनके आश्रम बाबा साहब मंदिर प्रांगण में पहुंचकर कुछ समय व्यतीत किया तथा रामायण के कुछ अंश की लिखे और दाहिनावर्ती शंख प्रदत्त किया जो आज भी वहां पर मौजूद है इसलिए यह स्थान तीर्थ में तीर्थंकर महातीर्थ कहा जाता है।
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