ईद-उल अजहा(बकरीद)पर विशेष रिपोर्ट
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रोहित गुप्ता/सुरेन्द्र प्रताप श्रीवास्तव मुन्ना
उतरौला/बलरामपुर ईदुल-अजहा (बकरीद) का त्यौहार कुर्बानी की सीख देता है,इसको लेकर तजक-ए-जहांगीरी ने लिखा है कि जो जोश खुशी उत्साह भारतीय लोगों में ईद मनाने का है वह गजब का है।बकरीद के मौके पर आमतौर पर ऊंट बकरे आदि की भी कुर्बानी करते हैं।लेकिन हकीकत यह है कि इस्लाम धर्म जिन्दगी के हर क्षेत्र में कुर्बानी मांगता है।इसमें धन व जीवन की कुर्बानी नर्म बिस्तर छोड़कर कड़कड़ाती ठंड व भीषण गर्मी में बेसहारा लोगों की मदद के लिए जान की कुर्बानी वगैरह ज्यादा महत्वपूर्ण बलिदान है कुर्बानी का असल अर्थ यहां ऐसे बलिदान से है जो दूसरे के लिए दिया गया हो।
जानवर की कुर्बानी तो सिर्फ प्रतीक है कि किस तरह हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह के लिए हर प्रकार की यहां तक की बेटे तक की कुर्बानी दे दी, खुदा ने उन पर रहमत की और बेटा जिन्दा रहा ।इस त्यौहार की शुरूआत के पीछे एक दिलचस्प और मार्मिक दास्तां है।बात इस्लाम धर्म के उदय से पहले की है।अल्लाह के पैगम्बर हजरत इब्राहीम को एक सपना आया कि अपनी सबसे प्यारी चीज अल्लाह के राह में कुर्बान कर दो।इस पर हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह की इस बात को सिर माथे लगाते हुए अपने इकलौते बेटे इस्माईल की कुर्बानी देने की ठान ली। वे बेटे को बस्ती से बाहर एक वीरान जगह पर ले गए ,इस समय उनका बेटा् काफी छोटा था रास्ते में एक शैतान ने इस्माइल को यह कहकर बरगलाने की कोशिश की कि तुम्हारे पिता अल्लाह की राह में तुम्हारी कुर्बानी देने जा रहे हैं।इस पर इस्माइल ने कहा कि यह खुशी की बात है कि हमारी कुर्बानी अल्लाह की राह में होने जा रही है।बेटे ने अपने पिता हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को यह सलाह दी कि कुर्बानी करते समय कहीं मोहब्बत आड़े न आ जाए,इस लिए कुर्बानी के समय आप अपनी आंखों पर पट्टी बांध लीजिए।ऐसा करते हुए हजरत इब्राहीम ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध कर बेटे की गर्दन पर छुरी चला दी।ऐसा करते समय उन्हें बकरे की आवाज सुनाई दी।जब उन्होंने आंख से पट्टी हटाई तो वहां एक बकरा कटा हुआ पड़ा था और बगल में इस्माइल फरिश्ते जिब्राईल का हाथ पकड़े खड़े थे।फरिश्ते जिब्राईल ने हजरत इब्राहीम से कहा कि अल्लाह ने आप की कुर्बानी कबूल कर ली है।इसी के बाद से इस्लाम धर्म के लोगों की ओर से यह त्यौहार मनाया जाता है और कुर्बानी दी जाती है।
ईदुल अजहा हक के लिए अल्लाह की राह में कुर्बान हो जाने का त्यौहार है।इसे अमीर और गरीब सभी लोग मनाते हैं कुर्बानी उन्हीं के लिए फर्ज है जो अमीर हों।अमीर के साथ गरीब भी मना सके इसके लिए कुर्बानी का जानवर तीन हिस्सों में बांट दिया जाता है इसमें से एक हिस्सा खुद के लिए और एक हिस्सा दोस्तों अजीजों में तथा एक हिस्सा गरीबों में बांटा जाता है।ईदुल अजहा पर्व पर आज भी लोग अपने अपने हिसाब से कुर्बानी देते हैं।इस पर्व पर हज के समापन पर अंतिम दिन मनाया जाता है ।इस्लाम में इसे सुन्नते इब्राहीमी का नाम दिया गया है।हजरत इब्राहीम अल्लाह को बहुत प्यारे थे।इसलिए उन्हें खलीलुल्लाह की पदवी भी दिया गया है ।
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