यादो में सिमटता जा रहा सावन का झूला अब सावन में नही दिखाई देते बागों में झूले
अमित गुप्ता
संवाददाता
कदौरा/जालौन एक जमाना था जब सावन का महीना शुरू होते ही घर आंगन व बगीचे में लगे पेड़ पर झूला लगाकर लोग गीतो के साथ उसका आनंद उठाते थे परंतु समय के साथ साथ बगीचों से पेड़ और झूले दोनो गायब होते चले गए।हालांकि सावन के माह का धार्मिक महत्व भी है और ये मनुष्व को प्रकृति से जोड़ता भी है।आधुनिकता की दौड़ में प्रकृति के संग झूला झूलने की बात अब दिखाई नही देती।खासकर ग्रामीण क्षेत्र में बालक बालिकाएं भी सावन के झूलो का लुफ्त नही उठा पाते।ग्रामीण जीवन मे लगभग दो से तीन दशक पूर्व तक झूलो के बिना सावन की परिकल्पना भी नही होती थी।लेकिन वर्तमान समय मे सावन के झूले नजर आना ही बंद हो गये है।बुद्धिजीवी वर्ग इसका मुख्य कारण बढ़ी आवादी के साथ ही पेड़ो की कटाई को मानते है
कस्बे में प्राचीन काल से स्तिथ राम जानकी मंदिर के महंत अनिल दुर्वेदी बताते है कि भारतीय संस्कृति में झूला झूलने की परंपरा बैदिक काल से हो रही है।भगवान श्रीकृष्ण राधा के संग बागों में झूला झूलते थे।मान्यता है कि इससे प्रेम बढ़ने के अलावा प्रकृति से जोड़ने व हरियाली बनाये रखने की प्रेरणा मिलती है
सीन न 1
कदौरा/जालौन, कस्बा निवासिनी गृहिणी सीमा निगम बताती है कि झूला गांव के बगीचों में लगाया जाता था जिस पर अधिकतर गांव की बेटियो का ही कब्जा रहता था लड़के भी इसमें शामिल रहते थे मगर सहयोगी के रूप में।बर्तमान समय मे अब झूले की परंपरा अब गायब सी हो गई है।सावन की खुशबू अब नही दिखाई देती है।झूलो के नही होने से अब गांव में लोगगीत भी सुनने को नही मिलते है।बाल अवस्था की उम्र में हम अपने गांव में सावन के महीने में बारिश में भीकते और बागों में सहेलियो के संग झूले झूलते।अब वो जमाना नही रहा
सीन न 2
कदौरा/जालौन,कस्बा निवासिनी गृहिणी शिखा गुप्ता बताती है कि तीन दशक पूर्व सावन गांव की बेटियां पेड़ो पर झूला डालकर झूलती थी।झुंड के रूप में इकट्ठा होकर बेटियां लोगगीत भी गाया करती था।झूला झूलने के खत्म हुय रिवाज जे लिये गांव में फैल रही वैमनष्यता जिम्मेदार है।पहले संयुक्त परिवार के लोग एक दूसरे के घरो से जुड़े रहते थे और अपनापन था।जबकि अब एकल परिवार में इस आपसी स्नेह को खत्म कर दिया है
सीन न 3
कदौरा/जालौन,कस्बा निवानिसि जसोदा गुप्ता बताती है की बाल अवस्था मे हम अपने गांव जसपुरा जनपद बांदा के एक प्राईमरी स्कूल में पड़ने के लिए जाते थे और सावन के महीने में स्कूल के पास बाले बगीचे में अपनी सहिलिओ के संग झूला झूलते थे।समय बीता और हमारा विवाह हो गया अब सावन में सावन जैसी बात नही
सीन न 4
कदौरा/जालौन,कस्बा निवासिनी नगर पंचायत अध्यक्ष अर्चना शिवहरे बताती है कि कई बर्ष पूर्व सावन का महीना लगते ही बागों में झूले डालना शुरू हो जाते थे और हमारी गांव की साहिलिया जिसमे मुस्लिम समुदाय की बेटियां के संग लोग गीतों के साथ झूला झूलते थे और जलेबियों खाते थे।मगर अब पहले जैसी बात कहा
सीन न 5
कदौरा/जालौन,नन्हे मुन्ने बच्चे फैजान खान,सानिया खान,निदा परवीन 6 क्लास की छात्रा बताती है कि कस्बे में अब बाग ही नही रहे अब झूला कहा झूले।बच्चो ने अपने घरों में ही झूला डालकर अपने भाई बहनों के साथ झूला झूलते है
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