मनुष्य का शरीर धारण करने का एकमात्र उद्देश्य सत्कर्म करना:------प्रेमभूषण जी
मनोज तिवारी ब्यूरो प्रमुख अयोध्या
अयोध्या कथा गायन से श्रीराम की महिमा कही गई। हनुमान गुफा के पास कथा मंडप में प्रेममूर्ति प्रेमभूषण ने कथा वाचन किया। उन्होंने कहा- गंगा जी को पतित पावनी कहा गया है। अर्थात गंगा के जी जब कृपा करती हैं तो मनुष्य के जीवन के सभी पाप का हरण कर लेती हैं। इसी प्रकार से भगवान की कथा मनुष्य के जीवन के सभी प्रकार के ताप का हरण कर लेती है।
उन्होंने कहा कि सनातन सद्ग्रन्थों में लिखा गया है - दैहिक, दैविक, भौतिक तापा रामराज काहू नहीं व्यापा। इस काल में जो भी भगवान में लगा रहेगा उसे कभी भी कोई पाप और ताप नहीं सताएंगे। भगवान में लगना भी सभी के वश की बात नहीं है क्योंकि हम जब कई जन्मों तक सत्कर्म करते हैं तब जाकर भगवान की ओर हमारा मन चलता है।
उन्होंने श्रीराम जन्म के कारण और जन्मोत्सव से जुड़े प्रसंगों का गायन करते हुए कहा कि मनुष्य के रूप में जन्म लेना जीव का सौभाग्य मान गया है। मानव शरीर में रहकर ही जीव अपना कल्याण कर पाता है और अन्य किसी भी जीव को यह सुयोग नहीं मिलता है।
मनुष्य का शरीर धारण करने का एकमात्र उद्देश्य सत्कर्म करना ही है। इस धरा से वापस जाने पर केवल सत्कर्म ही है अपने साथ जाता है।
प्रेममूर्ति प्रेमभूषण ने कहा कि भारत की पुण्य भूमि पर ही भगवान का अवतार होता रहा है। कभी अंशा अवतार तो कभी विशिष्ट अवतार और तो कभी पूर्णावतार के रूप में भगवान इस धरती पर आकर इस धरती को धन्य करते रहे हैं।यह हमारा सौभाग्य है कि हमने इस धरती पर जन्म लिया है।
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