कालपी की काली हवेली को देश भक्तों ने शहीदों की हवेली नाम दिया था

Aug 14, 2023 - 18:36
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कालपी की काली हवेली को देश भक्तों ने शहीदों की हवेली नाम दिया था

अमित गुप्ता

संवाददाता

कालपी जालौन नगर पालिका परिषद में नसीरूदीन वल्द अहमद बख्स के नाम से दर्ज नगर के मुहल्ला महमूदपुरा में स्थित काली हवेली जो शहीदों की हवेली भी कहलाती है!

डा. सैय्यद रौनक अली हासमी के अनुशार मीर कादिर अली और ग्राम मगरौल के बरजोर सिंह तथा काजी रोशन अली हमीरपुर आदि सन 1857 ई. में नाना साहेब पेशवा की ओर से प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ लड़े थे जिसके कारण इन सबको काला पानी की सजा हुई थी ! मीर कादिर अली इस हवेली के मुखिया थे अत: उनकी सजा के बाद इस हवेली को बागी हवेली करार दे दिया गया और देश भक्तों ने हवेली को शहीदों की हवेली नाम दिया!

एक और बात पढ़ने में आई कि इस हवेली को आधी हवेली के नाम से भी जाना जाता था! ऐसी लोकोप्ति है कि इस हवेली का काम होते होते रूक गया था जिससे इसका निर्माण पूर्ण न हो सका ! पहले देखा गया था कि छत के ऊपर चूने से भरे उल्टे तसलों के निशान थे!जो इसके अधूरे कार्य के प्रमाण थे!शायद इसी कारण से इसे आधी हवेली के नाम की ख्याति मिली हो!

बढ़ती आबादी सिकुड़ती जमीन और धन के लोभियों की नियत तथा सरकारी उपेक्षाओं के चलते एक ऐतिहासिक धरोहर काली हवेली तो अब छिन्न भिन्न हो चुकी है पर इतिहास में ज़ो इसकी बनावट दर्शाई गई है उसे साझा करते हैं! काली हवेली के जो भग्नावशेष हैं उनक़ देखने से यह ज्ञात होता है कि यह हवेली अंग्रेजी के अक्षर एल के आकार में बनी है !संपूर्ण हवेली 100 फिट के क्षेत्र में बनी है हवेली के पीछे की दीवार लम्बी व ऊंची थी जिसमें अलग अलग कमरे थे! प्रत्येक पंक्ति में कई कमरे अंकित थे! आले की दो दो पंक्तियां दृष्टवय थीं! आले का अंकन विशेष प्रकाल का है एक कमरे में पांच बडे़ इले थे उनके बगल में दो छोटे छोटे आलै थे जोकि डेढ़ फुट गहरे थे कमरे की छत गोल डाट न होकर पक्की सीधी है उसको पतली ईंटों व चूना के गारे से बनाया गया था जिसकी मोटाई लगभग डेढ़ फुट है !पूरी हवेली की दीविरें पत्थर व चूने की बनी हैं जो ढाई फिट चौड़ी है भीतरी कमरे के बाद बाहर उपरी छत से ढका बरांडा है जो कि बाहर की ओर 12 पहलुओं के खम्बों पर आधारित है !काली हवेली कभी चार मंजिला की रही होगी 4 मंजिल अवशेष अभी भी देखे जा सकते हैं! प्रत्येक मंजिल में पहुंचने के लिये सीढ़ियों की भी व्यवस्थि थी!

काली हवेली में नक्कासी दार लाल पत्थरों का बहुतायत में प्रयोग किया गया है !इस हवेली में एल की छोटी लाइन की दशा में दीवाने आम रहा होगा जिस पर लाल बलुआ पत्थर से ही तीन बडेध दरवाजे मेहराबदार बने हैं! मेहराबों मे उत्कृष्ट कलात्मक पच्चीकारी देखी जा सकती है बेलबूटों से अलंकृत यह नक्कासी बडीध ही सुन्दर प्रतीत होती है !इस नक्कासी में कमल आज फुलों का अत्यंत सुन्दर उपयोग हुआ है ! मेहराब के अन्दर भी बेलबूटों की अत्यधिक सुन्दर कारीगरी है जो कि देखते ही बनती है पत्थर को आपस में लोहे की क्लिप द्वारा जोडा़ गया है पूरा हवेली में पानी के निकास की सुन्दर व्यवस्था थी!अत: काली हवेली वातानुकूलित रही होगी जिसके लिये पूरी हवेली में तमाम रोशनदान बने थे!

दीवाने आम की छत पर निशान अस्पष्ट हैं इससे यह ज्ञात होता है कि उसके ऊपर छत नहीं बन पाई बाकी पूरी हवेली में छत बनी थी! कुछ स्थानों में छत के ऊपर पुन: लाल बलुआ पत्थर के बेलबूटे युक्त स्तम्बों पर आधारित मेहराब युक्त द्वार बने थे !

काली हवेली की वास्तु शिल्प देखने से यह ज्ञात होता है कि हवेली मुस्लिम स्थापत्य के अनुरूप नहीं बनी है इसमें पत्थर से की गई न नक्कासी बेलबूटे व कमल पुष्पों का अंकन विशेष रूप से इस बात को स्पष्ट करता है कि इस हवेली का निर्माण हिन्दू स्थापत्य के अनुकूल हुआ होगा !

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