जिसका जैसा भाव होता है सारा संसार वैसा ही नजर आता है : स्वामी रामप्रकाश शास्त्री
अमित गुप्ता
संवाददाता
कालपी (जालौन)। कालपी नगर से दो किलोमीटर दुर स्थित विश्व गुरु महर्षि वेदव्यास मंदिर मदारपुर मे चल रही संगीतमय सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के छठवे दिवस मे सुप्रसिद्ध कथा स्वामी रामप्रकाश शास्त्री जी ने श्रद्धालुओं को बताया कि
इंसान का जैसा भाव होता है, उसको सारा संसार वैसा ही नजर आता है। पूतना जब दूषित नियत से बाल कृष्ण को मारने गई गई तो मां यशोदा समझ नहीं पाई। क्योंकि उनके भाव अच्छे थे। तो उनको पूतना के अंदर भी अच्छाई ही नजर आई। इसी प्रकार से अगर इस संसार में अगर हमको कुछ पाकर के नाम अमर करके जाना है तो नरसिंह भगत, मीरा बाई और शबरी की तरह अपने मनोभाव करने होंगे। भजन के माध्यम से बताया कि ऐसे कर्म करके जाएं ताकि जिससे हमारा नाम अमर हो जाए और आने वाली पीढ़ी को अच्छे संस्कार मिलें। श्रीशास्त्री के मुखारिविन्दु से कृष्ण जन्म एवं उनकी लीलाओं की कथा सुन श्रोता भावविभोर हो गये। विद्धान कथा व्यास राम प्रकाश शास्त्री ने श्रोताओं को भगवान कृष्ण की जन्म कथा श्रवण कराते हुये सुनाया कि भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। यह तिथि उसी शुभ घड़ी की याद दिलाती है और सारे देश में बड़ी धूमधाम से कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है।
उन्होने श्रोताओं को बताया कि द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। उसके आततायी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था। एक समय कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था।
रास्ते में आकाशवाणी हुई- 'हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है। इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा।' यह सुनकर कंस वसुदेव को मारने के लिए उद्यत हुआ।
तब देवकी ने उससे विनय पूर्वक कहा- 'मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। बहनोई को मारने से क्या लाभ है 'कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया। उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया।
वसुदेव-देवकी के एक-एक करके सात बच्चे हुए और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। अब आठवां बच्चा होने वाला था। कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिए गए। उसी समय नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था।
उन्होंने वसुदेव-देवकी के दुखी जीवन को देख आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा। जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं सिर्फ 'माया' थी।
जिस कोठरी में देवकी-वसुदेव कैद थे, उसमें अचानक प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए। दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े। तब भगवान ने उनसे कहा- 'अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं।'
तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंदजी के घर वृंदावन में भेज आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो। इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है। फिर भी तुम चिंता न करो। जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के फाटक अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने का मार्ग दे देगी।' उसी समय वसुदेव नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और अथाह यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे। वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए। कारागृह के फाटक पूर्ववत बंद हो गए।
अब कंस को सूचना मिली कि वसुदेव-देवकी को बच्चा पैदा हुआ है।
उसने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, परंतु वह कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से कहा- 'अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारनेवाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है। वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा। इसी प्रकार कथा व्यास ने भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं काे संक्षेप मे सुनाया। इस संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा मे नाल वादक मस्ताना रज्जन जी, आर्यगन वादक शिव शंकर जी, पैड वादक अजय जी, पाठ पं अवधेश शास्त्री साथ दे रहे है। महर्षि वेदव्यास मंदिर के मंहत श्री हरिहरदास महाराज ने बताया कि उक्त श्रीमद्भागवत कथा 2 तारीख को विश्राम होगी और 3 तारीख गुरु पूर्णिमा को विशाल भंडारा आयोजित होगा।
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