बुन्देलखण्ड का लोकपर्व कजलियां कृषि और संस्कृतिक का संगम है
कालपी (जालौन) बुन्देलखण्ड क्षेत्र अपनी समृद्धि संस्कृति गौरवशाली इतिहास और रंग बिरंगे त्योहारों के लिए प्रसिद्ध है !इस क्षेत्र की लोकपरंपराएं और त्योहार अद्वतीय प्रथाओं और ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़े हुए हैं! जिनमें वीरता और धैर्य की झलक मिलती है !एसा ही एक महत्वपूर्ण लोक उत्सव है कजलियां जिसे बुन्देलखण्ड में परंपरा और आस्था का प्रतीक माना जाता है यहां आपको बता दें कि इसे भुजरियां के नाम से भी जाना जाता है !
रक्षा बन्धन के सात दिन पहले घर की महिलाएं मिट्टी के खप्पर में गेंहूं य जौ बोतीं हैं और रक्षा बन्धन के दिन और उसके एक दिन बाद तक इसे तालाब य पवित्र नदियों में विसरृजित करतीं हैं माना जाता है कि जितनी सुन्दर और हरी भरी कजरिंया होतीं है उतनी ही अच्छी फसल होती है !विसर्जन से पहले खप्पपर से कजलियां खोंट ली जातीं है और सभी लोग एक दूसरे को उक्त कजरियां देकर गले मिल खुशी का इजहार करते हैं !इस दिन बुन्देलखण्ड के क ई स्थानों पर मेला दंगल सहित विभिन्न आयोजन होते हैं! बुन्देलखण्ड क्षेत्र मे कजरिया महोत्सव भी मनाया जाता है !
कजरियों की परंपरा बारहवीं सदी की एक घटना जिसमें महोबा के राजा आल्हा ऊदल और पृथ्वीराज से जुड़ी एक कहानी ने कजरियों के उत्सव को एक नया मान दिया है और लोकगीतों में अमूल परिवर्तन किया है !पहले कजलियां फसल और समृद्धि से जुड़ीं थीं पर इस प्रसंग से संबद्ध होकर भाई बहन के प्रेम का प्रतीक बन गईं यहां तक कि प्रेम और सद्भाव इतना आम हो गया कि अब कजलियां सभी के भाई चारे का संदेश सब जगह ले जातीं हैं और होली के रंग और दशहरे के पान की तरह भारतीय संस्कृति की विरासत बन गयी हैं !
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