अध्यात्म - भगवान श्री कृष्ण की इस लीला से जुड़ा है गोपाष्टमी का पर्व

Nov 9, 2024 - 17:45
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अध्यात्म - भगवान श्री कृष्ण की इस लीला से जुड़ा है गोपाष्टमी का पर्व

ज़िला संवाददाता 

अमित गुप्ता 

कालपी/जालौन आज ब्रज समेत पूरे देश में गोपाष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है और इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, यश राजयोग समेत कई शुभ फलदायक योग बन रहे हैं। इन शुभ योग में गाय का पूजन करने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। मान्यता है कि गोपाष्टमी तिथि से ही भगवान कृष्ण ने गायों को चराना आरंभ किया था। 

आइए जानते हैं क्यों मनाया जाता है गोपाष्टमी का पर्व, महत्व, कथा...

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाता है और इस बार यह शुभ तिथि 9 नवंबर दिन शनिवार को है। गोपाष्टमी के पर्व पर भगवान कृष्ण और गायों की पूजा होती है। मान्यता है कि गोपाष्टमी पर गाय की पूजा उपासना करने से 33 कोटि देवी देवताओं का आशीर्वाद मिलता है और घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन से भगवान कृष्ण ने गाय को चराना शुरू कर दिया था, इससे पहले वे केवल गाय के बछड़ों को ही चराया करते थे। इसी उपलक्ष्य में मथुरा वृंदावन समेत कई जगह इस पर्व को मनाया जाता है।

 आइए जानते हैं इस पर्व के बारे में खास बातें...

गोपाष्टमी पर बने कई शुभ योग

ज्योतिषाचार्यों ने बताया कि अष्टमी तिथि शुक्रवार रात 11 बजकर 56 से शनिवार रात 10 बजकर 45 बजे तक रहेगी। ऐसे में उदया तिथि के लिहाज से शनिवार को गोपाष्टमी मनाई जा रही है। गोपाष्टमी का पूजन अभिजीत मुहूर्त में किया जाता है और आज यह मुहूर्त सुबह 11 बजकर 43 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 26 मिनट तक रहेगा। साथ ही गोपाष्टमी पर सर्वार्थ सिद्धि योग, शश राजयोग समेत कई शुभ योग भी बन रहे हैं।

गोपाष्टमी पर्व का महत्व

गाय को हिंदू धर्म में बेहद महत्वपूर्ण माना गया है और गाय को माता का दर्जा भी दिया गया है। गाय माता की सेवा करने से मात्र से हर मनोकामना पूरी होती है और मृत्यु के बाद गोलोक में स्थान भी मिलता है। साथ ही परिवार में सुख शांति बनी रहती है और जीवन में कोई संकट भी नहीं आता। मान्यता है कि गाय में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास होता है और गाय को आध्यात्मिक और दिव्य गुणों का स्वामी भी माना जाता है। गोपाष्टमी गायों की पूजा को समर्पित और उनके प्रति कृतज्ञता और सम्मान प्रदर्शित करने का त्योहार है। कई कथाओं में वर्णन मिलता है कि किस तरह भगवान कृष्ण ने अपनी बाल अवस्था में गाय माता की सेवा की है। गीता में भगवान कृष्ण ने स्वयं कहा है कि ‘गवां मध्ये वसाम्यहम्’ अर्थात् मैं गायों के बीच में ही रहता हूं। जिन बहनों ने भाई दूज पर भाइयों को तिलक नहीं लगा पाई हैं, वो इस दिन उन्हें तिलक लगा सकती हैं।

गोपाष्टमी की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान कृष्ण 6 वर्ष के थे, तब उन्होंने माता यशोदा से कहा कि मां मैं अब बड़ा हो गया हूं इसलिए अब मैं बछड़ों के साथ गाय को भी चराने जाउंगा। तब मैया यशोदा ने कहा कि इसके लिए तुम अपने बाबा से बात करो। बाल गोपाल तुरंत नंद बाबा के पास गए और गाय चराने को कहा। लेकिन नंद बाबा ने मना कर दिया कि तुम अभी काफी छोटे हो, अभी केवल बछड़ों को ही चराओ। लेकिन बाल गोपाल अड़े रहे, तब नंद बाबा ने कहा कि जाओ पंडितजी को बुला लाओ। बाल गोपाल भागे भागे पंडितजी को बुला लाए। पंडितजी ने पंचांग देखा और उंगलियों पर गणना करने लगे। काफी देर तक जब पंडितजी ने कुछ नहीं कहा तब नंद बाबा बोले आखिर हुआ क्या है.. पंडितजी आप काफी देर से कुछ बोल नहीं रहे हैं। पंडितजी बोले गायों को चराने का मुहूर्त आज ही बन रहा है, इसके बाद पूरे साल तक कोई मुहूर्त नहीं है। पंडितजी के बात सुनकर बाल गोपाल तुरंत गायों को चराने के लिए निकल पड़े। बाल गोपाल ने जिस दिन से गायों को चराना शुरू कर दिया था, उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि थे इसलिए पूरे ब्रज में इस दिन गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाता है और गौ वंश की पूजा की जाती है।

गोपाष्टमी को लेकर अन्य कथा

गोपाष्टमी को लेकर एक अन्य कथा यह भी मिलती है कि कार्तिक मास की प्रतिपदा तिथि से लेकर सप्तमी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण ने गौ, बछड़े और अन्य जानवर समेत पूरे ब्रजवासियों की रक्षा के लिए उंगली पर गोवर्धन पर्वत पर धारण कर लिया था। फिर अष्टमी तिथि के दिन देवराज इंद्र का अहंकार भंग हुआ है और वे भगवान श्री कृष्ण की शरण में आकर क्षमा याचना करने लग गए थे। तब कामधेनु गाय ने भगवान श्रीकृष्ण का अभिषेक किया था। तभी से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा।

गोपाष्टमी पूजा विधि

गोपाष्टमी के दिन गाय व गौवंश को स्नान करवाया जाता है और फिर आरती की जाती है। आरती करने के बाद हाथ जोड़कर अभिवादन किया जाता है। गाय में 33 कोटि देवी देवताओं का वास होता है इसलिए गौ पूजन से उनकी भी स्वत: ही पूजा हो जाती है। इसके बाद गाय की सात बार परिक्रमा करें और हरा चारा खिलाएं।

अगर घर में गाय नहीं है तो गोपाष्टमी के दिन गाय को घर के मुख्य द्वार पर बुलाकर उनको स्नान व सेवा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन गाय के साथ भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने का भी विधान है। घर के गेट पर ही गाय की पूजा अर्चना करें और हरा चारा खिलाएं। साथ गाय के चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लें।

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