संपादकीय -- नागपंचमी मिथक और वास्तविकता

Aug 23, 2023 - 07:17
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संपादकीय -- नागपंचमी मिथक और वास्तविकता

संपादकीय -छठीं शताब्दी ईपू अर्थात गौतम बुद्ध के समय भारत में 16 महाजनपद यानी गणराज्य थे। उन्ही में से एक गणराज्य नागबंशियों का भी था। उसकी राजधानी अहिच्छत्र में थी। अहिच्छत्र वर्तमान में उतर प्रदेश के बरेली जिले की आंवला तहसील में रामनगर के पास पड़ता है। आज भी अहिच्छत्र की राजधानी के खंडहर रामनगर के पास मौजूद हैं। 

यहाँ के राजा अपने नाम के अंत में नाग लगाते थे। इस वंश में अनेक राजा हुए थे। बाद में लगभग एक हजार साल बाद यह राज्य सम्राट् हर्षवर्धन के राज्य का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। यह क्षेत्र जैनधर्म का भी एक केंद्र रहा है। आज भी साल में जैनियों का मेला लगता है और देश भर के जैनियों का जमाबडा़ होता है। 

उन नागबंशी राजाओं का बाद में लोगों ने नाग यानी सर्प बना दिया गया। महत्वपूर्ण यह भी है कि यह राजा नाग के फन की तरह सर पर मुकुट धारण करते थे। आज भी बुद्ध की मूर्तियों में यह छत्र मिलते हैं। आज भी बहुत लोग अपने नाम के साथ नागवंशी टाइटल लगाते हैं। उन राजाओं की पूजा आज लोग सर्प मानकर और उनके लिए दूध पिलाकर (जबकि सांप दूध नहीं पीता है) कर रहे हैं। 

जब गौतम बुद्ध को भगवान् बनाया गया उसीतरह नाग राजाओं को (नाग) सर्प बना दिया गया। इतिहासकारों को इस इतिहास को खोजकर जनता के सामने लाना चाहिए। 

आज के दिन लोग गुडियों को पीटते हैं। यह परंपरा क्यों पैदा हुई इसपर भी खोज की जरूरत है। कौन अपनी बेटियों या बहनों को पीटता है। आजभी लोग इस गलत परंपरा को ढो रहे हैं। इसे बंद होना चाहिए।

                                  

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नागपुर,अनंतनाग,छोटा नागपुर का पठार और नागालैंड 

, नगर और नागरी लिपि इन सारे शब्दों में एक शब्द कॉमन है वह नाग ।नाग का नाम आते ही मन में कोबरा की तस्वीर चमक जाती है ।लेकिन क्या नाग कोई सांप ही है या नाग कुछ और है ? जिसने इतिहास पढ़ा है उसने नाग वंश के बारे में ज़रूर पढ़ा होगा । पौराणिक कथाओं में भी अनेक बार नागों की चर्चा आती है ।शेष नाग,तक्षक, वासुकि,कालिया नाग आदि । 

जिस तरह से नागों का विस्तार पूरे देश में दिखता है ,उससे यह स्पष्ट होता है कि नाग वंश का एक बड़े भूभाग पर विस्तार था ।एक मिथक के अनुसार शेष नाग अपने फन पर पृथ्वी को थामे हुए हैं ।इससे एक सीधा और तार्किक मतलब यह निकलता है कि नाग वंश पूरी धरती या इस भारतीय उपमहाद्वीप का आधार स्तंभ रहा है और पूरे देश की रक्षा इस वंश के शौर्य प्रदर्शन पर निर्भर थी ।यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि पृथ्वी को कौन थामे हुए है ।

नागवंश के लोग बुद्ध धर्म के अनुयायी माने जाते हैं । यही कारण रहा होगा कि पाँच नाग राजाओं को पंचमुखी नाग के रूप में बतौर बुद्ध के रक्षक कन्हेरी की गुफाओं में दिखाया गया है। कुछ बुद्ध की प्रतिमाओं के रक्षक सातमुखी नाग भी है ।

कुछ मान्यताओं के अनुसार सावन की पंचमी के दिन बौद्ध अनुयाई नाग लोग पंचायत करके अपना मुखिया चुनते थे । एक मान्यता के अनुसार परीक्षित और जन्मेजय ने मिलकर कई नाग वंशियों को जलाकर मार डाला था जिस कारण से नागों से इनका संघर्ष शुरू हो गया था और तभी से नागों के क्रोध को शांत करने के लिए इस दिन की स्मृति में नाग पूजा की जाती है।

 डॉ.अम्बेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को लगभग 10 लाख लोगों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा के लिए नागपुर को ही चुना, क्योंकि नागपुर प्राचीन काल में नागों का एक प्रमुख शहर था । वैसे प्रमुख शहरों में आज भी है ।

कुल मिलाकर नाग पंचमी ,नाग वंश के महान राजाओं का स्मृति दिवस है और नाग को सांप मानने वाले लोगों के लिए भी एक सीख है कि प्रकृति के सभी अंग-उपांगों की रक्षा करने में ही हमारा हित है । 

आप जो भी माने ,धर्म,मिथक या इतिहास ।आप सभी को नाग पंचमी की शुभकामनाएं । हां कभी सांप को दूध पिलाने की कोशिश मत करिएगा ।दूध पिए न पिए लेकिन आपका नुकसान ज़रूर कर सकता है।

नाग पंचमी का सच और नाग पंचमी का स्वरूप एवं वास्तविकता

 

नाग एक जाति के साथ साथ एक #वंश था इसी वंश के नाग लोग भारत के मूल निवासी हैं इन्हें #असुर, राक्षस, दैत्य व दानव कहा गया। नागवंशी राजा व योद्धाओ मे अनंत, बासुकी, शेष, पदम्, कवल, ककोटिक,अस्तर, शंखपाल,कालिया और पिंगल नागवीर प्रसिद्ध है। भारत में इनका ही वर्चस्व था और यह नाग भगवान बुद्ध के अनुयाई व बौद्ध धर्म के प्रचारक थे।उनका साम्राज्य भारत, यूनान ,मिश्र, चीन, जापान आदि देशों में भी रहा है। नाग वंश के बौद्ध लोग सावन की पंचमी के दिन वार्षिक पंचायत करते थे । यह पंचायत मुखिया का चुनाव के लिए होती थी। इस दिन लोग नहा धोकर अपने आराध्य देव तथागत बुद्ध की वंदना करके सुबह ही गांव के संस्थागार में एकत्र होते थे ।इनका आपसी रहन-सहन समता,एकता,न्याय और भाईचारे पर आधारित था। मुखिया तथा संघ नायक का चुनाव के दौरान प्रत्याशी के योग्यता प्रदर्शन के लिए कई तरह की प्रतियोगिता हुआ करती थी जैसे तलवारबाजी, घुड़सवारी, तीरंदाजी,मल्लयुद्ध आदि। वर्तमान में भी नाग पंचमी के दिन कुश्ती, दंगल कबड्डी, युद्ध कला से संबंधित दौड़, घुड़सवारी, निशानेबाजी आदि वीरता, साहस ,कौशल और शक्ति के प्रदर्शित करने वाले खेलों का आयोजन किया जाता है। इसलिए नाग पंचमी नागों द्वारा चयन किया गया वही दिन है जिस दिन वह अपने सेनापति,मुखिया और किसी श्रेष्ठ पद का चुनाव करते थे। वार्षिक बैठक किया करते थे।

यह दिन नाग वंश के लिए केवल परंपरा और पराक्रम और वीरता दिखाने का ही नहीं था बल्कि इस दिन का महत्व धार्मिक श्रद्धा और समर्पण की दृष्टि से और भी अधिक था क्योंकि इसी दिन आर्य राजा परीक्षित व जन्मेजय द्वारा असंख्य नागों को आग में झोंक कर मार डाला गया था। इससे आर्य व नागों मे संघर्ष बढ गये। तभी से नागों को गुमराह करके उनके क्रोध को शांत करने के लिए उनके नाम की पूजा प्रारम्भ हो गई। यह दिन उन्ही नागों का स्मृति दिवस है । 

नागवंश की स्त्रियां इसी दिन को नदी, तालाब के किनारे जाकर स्नान कर बोधवृक्ष, स्तूप, चैत्य, गुफा, विहारों आदि बौद्ध प्रतीकों की पूजा करके घर परिवार व समाज के लिए मंगल कामना करती थी। इसी समय घात लगाकर विकृत मानसिकता के लोगों ने इन स्त्रियों की पिटाई तथा बेज्जती की। कालान्तर में सामाजिक जागरूकता के कारण ऐसा कर पाना असंभव हो गया फिर भी इस परंपरा का निर्वाह अपने ही लोग गुड़िया पीटकर करते हैं।

नागपंचमी के बारे में इसे भी जानिए:-

हम नागवंशियों का ऐतिहासिक सच.....

इस देश की विरासत हम नागवंशियों की है।

शेषनाग का पूरा नाम शेषदात नाग था। उनके पूरे नाम की जानकारी हमें ब्रिटिश म्यूजियम में रखे सिक्कों से मिलती है।शेषनाग ने विदिशा को राजधानी बनाकर 110 ई.पू. में शेषनाग वंश की नींव डाली थी।शेषनाग की मृत्यु 20 सालों तक शासन करने के बाद 90 ई. पू. में हुई। उसके बाद उनके पुत्र भोगिन राजा हुए, जिनका शासन - काल 90 ई. पू. से 80 ई. पू. तक था।फिर चंद्राशु ( 80 ई. पू. - 50 ई. पू. ) , तब धम्मवर्म्मन ( 50 ई. पू. - 40 ई. पू. ) और आखिर में वंगर ( 40 ई. पू. - 31ई. पू. ) ने शेषनाग वंश की बागडोर संभाली।शेषनाग की चौथी पीढ़ी में वंगर थे। इस प्रकार शेषनाग वंश के कुल मिलाकर पाँच राजाओं ने कुल 80 सालों तक शासन किए।इन्हीं पाँच नाग राजाओं को पंचमुखी नाग के रूप में बतौर बुद्ध के रक्षक कन्हेरी की गुफाओं में दिखाया गया है।जिन बुद्ध की प्रतिमाओं के रक्षक सातमुखी नाग हैं, वे पंचमुखी नाग वाली प्रतिमाओं से कोई 350 साल बाद की हैं। 

नागपंचमी ये त्योहार दरअसल उन पाँच महान पराक्रमी नागवंशी राजाओं की याद मे मनाया जाता था जिन्होने बुद्ध संदेश का प्रसार भारत व भारत-पार किया उनके नाम थे "अनंत, वासूकी, तक्षक, करकोटक और पांचवा ऐरावत"

नागपंचमी का संबंध "नाग" इन सांप से न होकर, नाग यह "टोटेम " पांच पराक्रमी नाग राजाओं से संबंधित है।

उनके गणतांत्रिक (republican) स्वरुप में अनेक स्वतंत्र राज्य अस्तित्व में थे |जिसमें अनंत यह सबसे बड़ा | जम्मू - कश्मीर का अनंतनाग ये शहर उनकी याद की गवाही देता मौजूद है | उसके बाद दूसरे वासुकि नागराज ये कैलास मानसरोवर क्षेत्र के प्रमुख थे | तीसरे नागराजा तक्षक, जिनकी यादगीरी के रूप पाकिस्तान में तक्षशीला है |चौथे नागराजा करकोटक और पांचवें ऐरावत (रावी नदी के पास) | इन पांचों नागराजाओं के गणतांत्रिक राज्य की सीमा एक दूसरे से जुड़ी हुई थी |

इस क्षेत्र के लोग इन पांच पराक्रमी राजाओं की याद कायम रहे इसलिए हर साल समारोह आयोजित करते थे, वो नागपंचमी के नाम से जाना जाने लगा | इसका अनुसरण उन राज्य के अन्य प्रांतों के लोगों द्वारा किया गया | इस तरह नागपंचमी का समारोह पूरे देश में मनाया जाने लगा। आर्यो ने अपना वर्चस्व कायम करने नागराजा को सांप में परिवर्तित किया।

नागवंश के इस पुरामिथकीय सच को ऐतिहासिक रिसर्च की अपेक्षा है। सभी समाज अपने सामाजिक विरासत को लेकर गौरवान्वित होते है। ऐतिहासिक रिसर्च की व्यवस्था करते है। ताकि वे अपने गौरवपूर्ण इतिहास का संरक्षण कर सकें। हम इस दिशा में न सिर्फ पिछड़े हुए है, बल्कि उधार के ऋषियों से स्वयं को महिमा मंडित कर रहे है। ये हमारे लिए घातक है। नागपंचमी अब सांपों की पंचमी हो गई और नागवंशीओं की पंचमी लुप्त हो गई। बावजूद इसके आज भी हम लोग घर की दीवारों पर पांच नाग बनाना भूले नहीं | ये पांच नाग ही हमारे पूर्व के नागराजा है। धार्मिक परिसीमा से बाहर निकल कर नागपंचमी के त्यौहार का महत्व नागवंशिओ को जान लेना चाहिए।

नागवंश के पराक्रमी नागराजाओं को नमन ।

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