बबीना में 6 सौ वर्ष पुराना ऐतिहासिक साठिया कुआं , जिसमें कभी जलस्तर न तो बढ़ा न कभी घटा
अमित गुप्ता
संवाददाता
कदौरा/जालौन गांव अंचल में आधुनिकी करण को लिये प्रयासरत सरकारें नीतियों में भले ही गांव को शहरीकरण की तर्ज में गांव की सूरत बदलने की कोशिश कर रही है लेकिन वर्तमान कई दशकों में गांव गांव के नाम पर अरबों की संपत्ति खर्च करने के बाद अधिकांश विकास भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा है जिसके फल स्वरूप रोड जल आदि योजनाओं के कराए गए विकास जल्दी ही नेस्तो नाबूत जाते हैं इससे अच्छा तो पूर्व में समाजिक ग्रामीण मुखिया द्वारा बिना सरकार की मदद से जो समाज हित में निर्माण कराया था उससे एक ही नई कई पीढ़ियों को लाभ मिल रहा है देखरेख न होने के इन धरोहरों का अस्तित्व खत्म होता जा रहा है बात करते हैं वर्षो पुराने तालाब कुओं की जो कई पीढी पहले जनहित में बनाए गए थे और आज भी है लेकिन ध्यान न देने पर बर्बादी की ओर है गौरतलब हो कि विकासखंड की ग्राम पंचायत बबीना में 6 सौ वर्षों से अधिक पुराना कुआं जिसे ग्रामीण साठिया के नाम से जाना जाता है गांव के बीच बने इस कुएं की अद्धत बात यह है कि सात पीढियो से उक्त कुएं में 60 हाथ पर फुट जल स्रोतों से दिन-रात पानी झरने की तरह बहता है जो पानी कुएं में गिरता है लेकिन 120 फुट पर पानी का जलस्तर न तो कभी घटा और कभी न कभी बढ़ा यहां तक की इससे जुड़े दुर्गाहा तालाब का पानी बढ़ने पर कई बार उक्त कुएं में डाला गया लेकिन कुआं पानी उतना ही उतना हो रहा 63 वर्षीय ग्रामीणों देवी प्रसाद द्वारा बताया गया कि 6 पीढ़ी पूर्व ये कुआं वा तालाब गांव के सामाजिक सुदीन बाबा वा रामददीन बाबा उपाध्याय द्वारा गांव जनहित में बनवाया गया था और सभी ग्रामवासी उसी से पानी पीते थे वा अन्य जल तलाब से पूरे होते थे 150 वर्ष पूर्व जब बबीना गांव में जल अकाल पड़ा तो उसी कुएं तालाब से ही गांव का जीवन बचा और 600 वर्षों से अधिक समय बीत जाने के बाद भी कुएं का जलस्तर वी बहते हुए स्रोत कभी बंद नहीं हुए जो अपने आप में कुदरत की नायाब खासियत है हालांकि अब उक्त कुएं से कोई जल्दी नहीं निकलता बीच में दुर्घटनाएं होने से उसके जा डाल दी गई और दुखद बात है कि उक्त कुएं से सटा दुर्गाहा तालाब जो 12 बीघे मैं बना है उसके अंदर भी कुआं बनवाया गया था लेकिन कोई ध्यान ना देने से ओके तलाब अपना अस्तित्व खो चुका है जहां गंदगी भी काई से तालाब पूर चुका है वहीं आसपास से अतिक्रमण भी हो चुका है जबकि बीच गांव में ऐसी तालाब से लोग अपने सभी कार्य स्नान पूजा से लेकर सारी रस्में उसी तालाब से पूरी होती थी उसके साथ गांव के अन्य दर्जन भर कुएं तलाब तलाई आदि का अस्तित्व समाप्ति की ओर है और लोगों ने अतिक्रमण कर अपने घर आदि बनवा लिए हैं वे शौचालय का पानी भी इन्हीं तालाबों में डाला जा चुका है जो कि गांव के सामाजिक पूर्वजों द्वारा बिना स्वार्थ बिना सरकारी धन से बनाया गया था और आज वह सब का जीवन पालकर खुद अपनी पहचान को तरस रहे हैं
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