दाव पर लगा रहे अपनी जान, ट्रैक्टर-ट्रॉली में बैठकर सफर करते रहगीर
रिपोर्ट ----- सोनू महाराज
कालपी जालौन विकास खंड महेवा क्षेत्र के मदारीपुर रोड आये दिन ट्रेक्टर ट्राली मे सवारी भर भर के मां बलखंडी देवी मंदिर देवी के दर्शन करने भक्त जाते है उत्तर प्रदेश में अभी कुछ दिन पहले ट्रैक्टर-ट्रॉली से जुड़ी दो घटनाओं में 36 लोागों की जान चली गई। इस हादसे के बाद कई सवाल खड़े हुए थे ट्रैक्टर-ट्रॉली को लेकर हादसे का यह पहला मामला नहीं है। सड़क दुर्घटनाओं में ट्रैक्टर-ट्रॉली से यात्रा करने वाले लोगों की जान चली गई थी देखा जाए तो हर दिन करीब कई लोगों ने ऐसे हादसों में अपनी जान गंवा दी थी। नियमों की अनदेखी की जा रही है यह जानते हुए भी ट्रैक्टर सिर्फ कृषि कार्य के लिए है लोगों को ले जाने के लिए नहीं। पिछले कुछ वर्षों में हादसों का ऐसा ही ट्रेंड देखने को मिला है। इन हादसों पर गौर किया जाए तो इसके पीछे सबसे बड़ी वजह ट्राली ही है। लेकिन फिर भी राहगीर अपनी जान को जोखम मे डालकर सफर कर रहे है अगर ऐसा चलता रहा तो किसी दिन बड़ी घटना हो सकती है
ट्रॉलियों के डिजाइन की बात की जाए तो उन्हें कृषि उपज और अन्य सामान ले जाने के लिए तैयार किया गया है। सवारियों को ध्यान में रखकर कुछ भी तैयारी नहीं होती है। वर्तमान समय में ट्रॉली का निर्माण बड़े पैमाने पर असंगठित खिलाड़ियों द्वारा किया जाता है। इनको किसी खास एक्सपर्ट द्वारा नहीं बनाया जाता है। ट्रॉली को तैयार करते वक्त इसके आकार, एक्सल लोड ,रियर लाइट ऐसे न्यूनतम मानकों का भी ध्यान नहीं रखा जाता है। ट्रैक्टर-ट्रॉली मालिक अधिक सामान ले जाने के लिए ट्रॉलियों का आकार बढ़ाने की कोशिश करते हैं। पीछे चल रहे वाहन को चेतावनी देने के लिए शायद ही किसी ट्रॉली में बैक लाइट के साथ मिल जाए।ट्रॉली में अपना कोई ब्रेकिंग सिस्टम नहीं होता है और न ही शॉक एब्जॉर्ब करने की क्षमता। एक्सपर्ट का मानना है कि ट्रॉली में लोगों को बैठाकर सड़क पर चलना जोखिम भरा काम है। इनके पलटने का खतरा अधिक रहता है इसलिए इसमें लोगों को ले जाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
कुछ साल पहले ट्रैक्टर के साथ ट्रॉलियों में ब्रेक के सिंक्रनाइजेशन के लिए एक प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन कई समूहों के विरोध के कारण इसे रोक दिया गया था। कई बार इसके पीछे होने वाली राजनीति से भी मानकों को कड़ाई से लागू करना कठिन होता है। कई बार यातायात नियमों को भी अनदेखा कर दिया जाता है। जानकारों का मानना है कि इससे जुड़े मानकों का कड़ाई से पालन करने की जरूरत है।
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