परमात्मा का नाम स्मरण करने से ही जीव का कल्याण संभव : पं० सुशील

Feb 6, 2025 - 17:23
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परमात्मा का नाम स्मरण करने से ही जीव का कल्याण संभव : पं० सुशील

जगम्मनपुर ,जालौन। परमात्मा का स्मरण करते हुए उनके अवतारों की कथा सुनने से जीवन का कल्याण होता है।  

  पांच नदियों के पवित्र संगम पंचनद धाम श्री बाबा साहब मंदिर पर श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में तीसरे दिन समुद्र मंथन की कथा बांचते हुए श्रीमद् भागवत कथा व्यास पंडित सुशील शुक्ला ने उपस्थित श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा कि भगवान की कथा अमृत रूपी है इसका रसपान करने से मानव जीवन का कल्याण होता है। समुद्र मंथन में निकले 14 रत्नों का अलग-अलग विवरण देते हुए हलाहल विष को भगवान शिव जी द्वारा पान करने 

और कंठ के नीचे न उतारने देने का आशय उनके हृदय में विराजमान भगवान श्री राम को पीड़ा ना पहुंचे का अर्थ बताते हुए उन्होंने कहा कि इस संसार की बुराइयों के बीच जीवन यापन करते हुए उन्हें ग्रहण न करें, क्योंकि जैसे ही हम बुराई रूपी विष ग्रहण करेंगे उसी समय हमारे अंदर बैठा परमात्मा हमारा साथ छोड़ सात्विक विचारधारी हृदय में निवास कर लेगा। व्यास जी ने माता लक्ष्मी द्वारा नारायण को स्वीकार करने की कथा विस्तार पूर्वक कहते हुए बताया कि सभी के घर लक्ष्मी जी जाती हैं लेकिन यह उन पर निर्भर करता है कि वह भगवान श्री विष्णु जी की अर्धांगिनी के रूप में धार्मिक सात्विक कर्मयोगी के घर जाती हैं अथवा पाप, दुराचार, अत्याचार करने वाले व अधर्म पूर्वक धनोपाजर्न करने वाले के घर अपने वाहन उल्लू पर बैठकर जाती हैं। जहां नारायण के साथ लक्ष्मी जी का निवास होता है उस घर में शांति व समृद्धि स्थाई होती है जहां उल्लू पर विराजमान होकर जाऐगीं वहां अशांति दुराचरण एवं दुखद परिणाम देने वाली होगी , अतः ईश्वर से प्रार्थना करो कि लक्ष्मी जी हमारे यहां पधारे अवश्य लेकिन उल्लू पर नहीं नारायण के साथ निवास करें और हमारा घर लक्ष्मी नारायण का मंदिर हो जाए। अतः लक्ष्मी जी की चाह रखने वाले लक्ष्मी जी की पूजा से पूर्व नारायण की पूजा करें। पंडित सुशील शास्त्री ने बताया कि भगवान की कथा हमेशा सुसंस्कार देती है अतः जब कभी भी अवसर मिले भगवान की कथा अवश्य सुनना चाहिए। राहुकेतु नामक राक्षस द्वारा अमृत पान करने ,अमर होने व भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से उसका सिर कटने के बाद भी आज उसे नवग्रह में पूजा जा रहा है क्योंकि भले ही वह राक्षस था लेकिन अमृत पीने की नीयत से उसने कुछ पल देवताओं की पंक्ति में बैठ सुसंगति पाई उसी का परिणाम यह है कि क्रूर ग्रह होने के बावजूद आज उसे नवग्रहों में स्थान मिला हुआ है। इस अवसर पर पंचनद धाम के महंत श्री सुमेरवन जी महाराज सहित सैकड़ो क्षेत्रीय लोग उपस्थित थे।

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