छोटी काशी कालपी का पातालेश्वर मंदिर जहां शिवलिंग की पूजा के बाद द्रोणाचार्य को हुई थी पुत्र की प्राप्ति

Jul 18, 2023 - 18:28
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छोटी काशी कालपी का पातालेश्वर मंदिर जहां शिवलिंग की पूजा के बाद द्रोणाचार्य को हुई थी पुत्र की प्राप्ति

अमित गुप्ता

संवाददाता

कालपी(जालौन) कालपी नगर के यमुना नदी के दक्षिणी किनारे पर कालपी किले के पश्चिमी भाग पर स्थित है पातालेश्वर मंदिर है!इस पातालेश्वर नाम की शिवलिंग की अध्यात्मिक मान्यता है यह शिवालय अकेला किला गिर्द (हरीगंज) मोहल्ला में किले के समीप बना हुआ है जिसमें शिवजी कुछ निचाई पर स्थित है जहां बहुत ठंडक रहती है! यह अत्यंत प्राचीन शिवालय इस पातालेश्वर मंदिर के नजदीक अंग्रेजों का कब्रिस्तान है !

 यह मंदिर पौराणिक है यह मंदिर 5000 वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन है द्वापर में यही मूर्ति मणिकेश्वर महादेव के नाम से विख्यात थी! कालपी में जब किले का निर्माण हुआ तब गहराई में होने के कारण इसे पातालेश्वर के नाम से पुकारा जाने लगा किवदंती के अनुसार कोरवों और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य जी ने पुत्र प्राप्ति हेतु इसी शिवलिंग का पूजन किया था जिससे भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उन्हें अश्वत्थामा नामक अमरत्व को प्राप्त पुत्र दिया था ! इस मंदिर का जीर्णोद्धार मराठा काल में हुआ था तथा पीछे नाग मंदिर भी है जहां पर एक शिलालेख भी है जो पढ़ने में नहीं आता सामने सीताराम जी की मठिया है मंदिर में लगे पट्ट के अनुसार मणिकेश्वर के नाम से जाना जाता था ! जनश्रुति के अनुसार यह शिवलिंग स्वयंभू शिवलिंग है एवं इसका कोई पता नहीं है कि यह कितना गहरा है शिव पुराण के शहस्त्र नामों में मणिकेश्वर नाम भी मिलता है मंदिर निर्माण शैली से ऐसा प्रतीत होता है कि मंदिर का जीर्णोद्धार मराठा काल में हुआ होगा और यम मंदिर मराठा काल से भी प्राचीन है इस मंदिर की भौगोलिक स्थिति का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि यह मंदिर चंदेल कालीन कालपी किले के शेष बचे एकमात्र विध्यसाव शेष के बिल्कुल नजदीक है यह किले से इसकी अधिकतम दूरी 200 मीटर होगी कालपी का किला अत्यंत विशाल था और उसकी विशालता की परिधि में यह मंदिर का आना स्वभवता इंगित करता है कि यह मंदिर उस काल में भी रहा होगा !

यह मन्दिर दो कक्षों के समूह में निर्मित है तथा पूर्वा विमुख है! पूर्वी कक्ष मण्डप की भांति उपयोग में आता है एवं पश्चिमी कक्ष मन्दिर का गर्भ ग्रह चौकोर है!इसमें पांच सीढ़ियों से नीचे उतरकर जाना पड़ता है! इस कक्ष के ऊपर अष्टकोणीय विमान है जिसके ऊपर केन्द्र में कमलदल के मध्य कलश स्थापित है गुम्बज एवं अष्टभुजी आधार के संधि स्थल पर चारों ओर उठी कमल की पंखुड़ियां अंकित हैं!गर्भ ग्रह के ऊपर अष्टभुजी गुम्बद से अलग चारों कोनों पर एक एक ऊंचे आधार पर स्थित चतुर्भुजी,चतुर्द्वारीय मठिया अंकित है गर्भग्रह के बाहर पूर्व की ओर अर्चना मण्डप की गोल डाट की सादा छत है जिसके केन्द्र में कलश एवं पताका स्तम्भ लगा है !गर्भ ग्रह की ऊपरी वाहयदीवार पर तोड़ों पर आधारित एक छज्जा भी बना है जिसके ऊपर चौतरफा मैहराब अंकित है!

भक्त जनों अंत मे यही बताना चाहते हैं कि महाभारत में भी इस मन्दिर का वर्णन है पाण्डवों ने अपना अज्ञातवास कालपी में भी काटा था ! जिसको लेकर इस बात की भी संभावना प्रबल है कि गुरू द्रोणाचार्य का आश्रम भी कालपी के आस पास ही था!माना जाता है कि द्रोणाचार्य जी स्वयं पाताल से प्रकट हुए थे जो यहां पातालेश्वर की पूजा करने आये थे और पुत्र प्राप्ति के लिए महादेव की आराधना की थी महादेव की कृपा से जो पुत्र गुरु द्रोण प्राप्त हुआ वह आज भी अजर अमर है! तीन पीड़ियों से मन्दिर की पूजा पाठक परिवार कर रहा है वर्तमान पुजारी बीरेन्द्र पाठक और तमाम भक्तों का मानना है आज भी गुरू द्रोणाचार्य पातालेश्वर महादेव की पूजा करने आते हैंक्षजिसका ऐहशास कई बार हुआ है!तो आईए भगवान शिव के सबसे प्रिय श्रावण मास में पातालेश्वर महादेव की आराधना रूद्राभिषेक कर अपने जीवन को कृतार्थ कर मुक्ति पायें!

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