आस्था एवं उत्साह का महापर्व है छठ पूजा

Nov 19, 2023 - 17:22
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आस्था एवं उत्साह का महापर्व है छठ पूजा

संवाददाता

अमित गुप्ता

कालपी/ जालौन सूर्योपासना का महापर्व छठ कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है! इसलिए इसे छठ कहा जाता है! इस चार दिवसी उत्सव की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के दिन नहाय खाय से होती है !अगले दिन खरना होता है तीसरे दिन छठ का प्रसाद तैयार किया जाता है और स्नान कर अस्त होते सूर्य को अध्य्र दिया जाता है !सप्तमी को चौथे और अंतिम दिन उगते सूर्य की पूजा आराधना के साथ इस महापर्व का समापन होता है! छठ पर्व के प्रसाद में प्राय: चावल के लड्डू बनाए जाते हैं और बांस की टोकरी में प्रसाद तथा फल सजाकर इस टोकरी की पूजा की जाती है !व्रत रखने वाली महिलाएं सूर्य को अर्ध देने तथा पूजा के लिए तालाब नदी अथवा घाट पर जाकर स्नान कर डूबते हुए सूर्य की पूजा करती है और अगले दिन सूर्योदय के समय सूर्य को अर्ध देकर पूजा करने के पश्चात प्रसाद बांटकर छठ पूजा का समापन होता है!सही मायनों में यह महापर्व जीवनदाई सूर्य देव के प्रति आभार प्रकट करने का महापर्व है !छठ महापर्व की शुरुआत को लेकर कई कथाएं प्रचलित है !ऐसी मान्यता है कि लोक मात्र का षष्ठी की पहली पूजा सूर्य देव ने ही की थी !सूर्य को ज्योतिष विद्या में सभी ग्रहों का अधिपत माना गया है! इसलिए मानता है कि यदि समस्त ग्रहों को प्रसन्न करने के बजाय केवल सूर्य देव की आराधना की जाए तो कई लाभ मिल सकते हैं! माना जाता है कि सर्वप्रथम महाबली कार्ण ने ही सूर्य देव की पूजा शुरू की थी और आज भी छठ पर्व में सूर्य को अर्थ देने का विशेष महत्व है सूर्यपुत्र कर्ण तो भगवान सूर्य के परम भक्त थे जो प्रतिदिन घंटों तक कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य देव को अर्थ दिया करते थे! सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने थे! एक मान्यता यह भी है कि देवमाता अदिति ने प्रथम देवासुर संग्राम में असुरों से देवताओं के हार जाने पर तेजस्वी पुत्र की प्राप्त के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थी छठी मैया ने उनकी आराधना से प्रसन्न होकर उन्हें सूर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र को जन्म देने का वरदान दिया जिसके बाद अदिति ने त्रिदेव रूप आदित्य भगवान को जन्म दिया जिन्होंने देवताओं को असुरों पर विजय दिलाई कहा जाता है तभी से छत पर्व मनाए जाने का चलन शुरू हो गया!

आस्था और निष्ठा का अनुपम लोक पर्व छठ उत्तर भारत विशेष कर बिहार झारखंड पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा नेपाल के तराई क्षेत्र में मनाया जाने वाला सूर्य उपासना का महापर्व है !यह पर्व सूर्य उनकी पत्नी उषा तथा प्रत्यूष प्रकृति जल वायु और सूर्य की बहन छठी मैया को समर्पित है! उषा तथा प्रत्युष को सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्रोत माना गया है! इसलिए छठ पर्व में सूर्य और छठी मैया के साथ इन दोनों शक्तियों की आराधना की जाती है !षष्ठी देवी को ही छठ मैया कहा जाता है जो नि:संतानों को संतान देती है और संतानों की रक्षा कर उनको दीर्घायु बनती है! पुराणों में षष्ठी देवी का एक नाम कात्यायनी भी है !जिनकी पूजा नवरात्र में षष्ठी को होती है !माना जाता है कि छठ पर्व में सूर्य की उपासना करने से छठी माता प्रसन्न होकर घर परिवार में सुख समृद्धि रोगमुक्ति सम्पन्नता और मनोवांछित फल प्रदान करती है !छठ पूजा इस वर्ष 17 नवंबर से 20 नवंबर तक मनाई जा रही है! नहाय खाय 17 नवंबर को और खरना 18 नवंबर को है जबकि छठी की मुख्य पूजा संध्या अर्ध के साथ 19 नवंबर को होगी उगते सूर्य को अर्ध 20 नवंबर को दिया जाएगा और उसी के साथ छठ महा पूजा का समापन होगा ! पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य देव की बहन छठी मैया संतानों की रक्षा कर उन्हें लंबी आयु प्रदान करती है प्रातः काल में सूर्य की पहली किरण उषा और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण प्रत्युष को अर्ध देकर दोनों को नमन किया जाता है!

 इस पर्व को लेकर कुछ मान्यताएं महाभारत काल से भी जुड़ी है! पौराणिक कथाओं के अनुसार पांडव जब अपना सारा राजपाठ जुएं में हार गए थे तब श्री कृष्ण के निर्देशानुसार द्रोपदी ने छठ व्रत रखा और छठी मैया के आशीर्वाद से उनकी मनोकामना पूर्ण होने पर पांडवों को राज्यपाठ वापस मिला पांडवों की पत्नी द्रोपती द्वारा परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी आयु के लिए नियमित रूप से सूर्य की पूजा करने का उल्लेख भी मिलता है !छठ पूजा के अवसर पर नदियों तालाबों इत्यादि के किनारे पूजा की जाती है जिससे लोगों को इन जल स्रोतों के आसपास साफ सफाई रखने की प्रेरणा मिलती है धार्मिक मान्यताओं के अनुसार छठ पूजन साफ सुथरी नदी तालाब हो या अन्य जल स्रोतों के किनारे की जाती है इसलिए पूजा से पहले इन जल स्रोतों के आसपास पूरी साफ सफाई करने का विधान है !यह महापर्व नदियों को प्रदूषण से मुक्त करने की प्रेरणा देता है इसलिए इसे सर्वाधिक पर्यावरण अनुकूल हिंदू त्योहार माना जाता है!

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