संपादकीय - छठ पूजा त्यौहार
कार्तिक मास शुक्ल षष्ठी को आता ये चार दिवस का त्यौहार।।
सूर्योदय से शुरू होय ये,अस्थाचल गामी कर पूजा,भक्ति मिले अपार।।
अबकी बरस हम कईले बानी छठ पूजवा,बनउले बाटी रच-रचकर हम ठेकुआ।।
सूप के सजा बीच दीपक जलाईला,बांसे क बहंगिंया संग चलिला घाट हो,हे सूरज देवा।।
नहाय खाय का प्रथम दिवस माना जाता है कदुआ भात।
दूसरे दिन खीर दोस्ती रोटी खरना की तैयारी,गेहुआँ के ठेकुआ बनवली प्रसाद।।
हे छठ मैया भर दो झोलिया हमार।।
तीसरे दिन सँझहि बेला अरघवा दिहली सुरुजू के दुआर,अँचरा पसारी करिले विनती तोहरा से बिनती तुहार।।
चौथे दिन भोर के केरवा के पात पर उगेल सुरुज राउर दुआर,पाहुन आये बाट निहारे, गन्ना लग मड़ियाँ साजे।
अड़वा ,अड़वाँइन ,खरना खीर गुड़ ठेकुआँ प्रसाद ढाई दिनो का निर्जल व्रत,,हे छठी माई भर दो झोली हमार।।
नदी तलाब और जल पोखर पे ,खड़े रहे सब पनिया में।।
धरा सूर्य संध्या उषा की पूजा करें हर पल में।।
सभी भक्त ज़न नदी किनारे ज़ात सूर्य देव को ज़लदूध का अर्ध्य चढ़ावे मनोकामना पूर्ण हो ज़ात
छठी माई भर दो झोली हमार बुलाऊं घरवा में करूं सत्कार और अभिनंदन तन और मन से निकलते सूरजवा के डूबते सूरजवा के दे अरगवा,गिरावे पनिया की धार गांवें मंगल गान।।
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