सूर्य उपासना का महापर्व है छठ पूजा--संजय साहनी

Nov 3, 2024 - 18:19
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सूर्य उपासना का महापर्व है छठ पूजा--संजय साहनी

अमित गुप्ता 

उरई जालौन 

उरई (जालौन) चार दिवसीय महापर्व छठ की शुरुआत 5 नवंबर दिन मंगलवार से होने जा रही हैं उपरोक्त जानकारी प्रेस को संबोधित करते हुए शिक्षाविद, समाजसेवी एवं छठ पूजा समिति के अध्यक्ष संजय साहनी ने कहीं उन्होंने बताया यह पर चार दिनों तक चलता है जिसका समापन 8 नवंबर शुक्रवार को सुबह उठाते हुए सूर्य को अर्ध देकर किया जाएगा इस पूजा का पहला चरण दिन मंगलवार 5 नवंबर को नहाए खाए से शुरुआत होगी दूसरे दिन बुधवार 6 नवंबर को खरना पूजा और तीसरे दिन गुरुवार 7 नवंबर को मुख्य पूजा जिसे डाला छठ भी कहते हैं शाम 4:00 बजे स्थानीय राम कुंड पार्क उरई में अस्त होते हुए सूर्य को अर्ध्य देकर की जाएगी और चौथे दिन शुक्रवार 8 नवंबर को सुबह 4:00 बजे से 7:00 बजे के बीच स्थानीय रामकुंड पार्क उरई में उगते हुए सूर्य को अर्ध्य देकर पूजा समाप्त की जाएगी शिक्षामित्र एवं समाजसेवी छठ पूजा समिति के अध्यक्ष संजय साहनी ने छठ पर्व पर उल्लेख करते हुए बताया इस पूजा में भगवान सूर्य और छठी माता की पूजा की जाती है इस पूजा में पूजा में पवित्रता और शुद्धता का विशेष ख्याल रखा जाता है यह व्रत परिवार की खुशहाली और समृद्धि के लिए तथा भाईचारे का पवित्र त्यौहार है इसमें अमीरी गरीबी जात-पात का भेदभाव नहीं रखा जाता समाज का प्रत्येक व्यक्ति एक ही घाट पर मिल जुल कर छठ मानते हैं यह व्रत प्रकृति को समर्पित है जो प्रकृति हमें जिस रूप में देती है जैसे फल फूल जल उसे हम प्रतीक के तौर पर अर्पण करते हैं यह नदी और तालाबों को संरक्षित रखना और आसपास के वातावरण को स्वच्छ और साफ रखने का संदेश देती है इस पूजा में सूर्य भगवान की प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाती है जिस तरह सूर्य संसार रूपी सागर को अपने प्रकाश और ऊर्जा से हमेशा प्रकाशित और ऊर्जावान बनाए उन्हें हम छत के रूप में पूछते हैं इस पूजा की विशेष खासियत यह है कि इस पूजा को करने वाले 36 घंटे का निर्जला व्रत रखते हैं यह पर निम्न चरणों में मनाया जाता है। पहले दिन नहाए खाए यह 5 नवंबर दिन दिन मंगलवार को होने जा रहा है जिसमें सबसे पहले पूरे घर की साफ सफाई और ढुलाई की जाती है घर के प्रत्येक सदस्य नहा धोकर भगवान सूर्य को अर्ध्य देते हैंऔर इसके बाद घर की महिलाएं कच्चे चूल्हे पर आम की लकड़ी से शुद्ध शाकाहारी भोजन तैयार करते हैं इसमें लौकी की सब्जी चने की दाल अरवा चावल यही भोजन प्रसाद के रूप में छठी माता को अर्पण किया जाता है इसके बाद परिवार के सभी सदस्य इस भोजन को ग्रहण करते हैं और दूसरे दिन के लिए निर्जला व्रत प्रारंभ कर देती है जो की दूसरे दिन शाम को खरना के समय ही प्रसाद लेकर पहले चरण का उपवास समाप्त करते हैं। दूसरे दिन खरना पूजा होती है इस दिन प्रसाद के लिए गेहूं को धोकर सुखाया जाता है सूखने के स्थान पर परिवार का कोई ना कोई सदस्य अवश्य बना रहता है जब तक की गेहूं सूख न जाए क्योंकि यह पवित्र त्यौहार है यदि किसी चिड़िया ने इस गेहूं को झुठला दिया तो यह गेहूं पूजा के लिए मान्य नहीं होगा गेहूं सूखने के बाद इसे पिसाई जाता है किसी गेहूं के आटे से शाम को खरना के दिन रोटी गुड़ की खीर जिसमें गाय के दूध का इस्तेमाल किया जाता है और केले का भोग लगाया जाता है यह प्रसाद पूजा करने वाली महिलाएं पहले ग्रहण करती हैं और ग्रहण करते समय एकांत कमरे का प्रयोग करती है क्योंकि प्रसाद ग्रहण करते समय यदि किसी ने टोक दिया तो फिर फिर वह प्रसाद को वहीं पर छोड़ दिया जाएगा यह प्रसाद की महत्वाइतनी होती है की जिन घरों में छठ मनाया जाता है उन घरों में प्रसाद ग्रहण करने के लिए बिन बुलाए लोग जाते हैं और यह खरना के प्रसाद को ग्रहण करते हैं परिवार के बाकी सदस्य भी यही प्रसाद ग्रहण करते हैं इसके बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत प्रारंभ हो जाता है जो चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्ध्य देकर हीतोड़ा जाता है रात भर जाकर महिलाएं छठी माता के गीत गाती है।

तीसरे दिन गुरुवार 7 नवंबर को संध्या अर्घ्य जिसे हम डाला छठ के नाम से भी पुकारते हैं इस दिन स्थानीय रामकुंड पार्क उरई में अस्त होती है सूर्य को अर्ध्य दिया जाएगा इस दिन सुबह सुबह से ही पूरे परिवार में हर्ष और उल्लास का माहौल होता है सभी अपनी अपनी जिम्मेदारी के तहत अपनी अपनी सहभागिता निभाते हैं पुरुष बाजार से फल बस की टोकरी जिसे हम डाल कहते हैं सूप खरीद कर लाते हैं और घरों पर इस पूजा में विशेष कर ठेकुआ का प्रसाद बनाया जाता है ठेकुआ गुड़ घी किसमिस और आटे का बना होता है इसके बाद सभी फलों को और ठेकुआ को डाला और सूप में सजाकर परिवार के पुरुष लोग इसे सिर पर रखकर घाट तक पहुंचाते हैं वहां पर ईसे सूप में रखकर हाथ में लेकर पानी में खड़े होकर भगवान सूर्यदेव के सामने खड़ी हो जाती है तथा अस्त होने का इंतजार करती है जैसे ही भगवान सूर्य अस्त होने लगते हैं वैसे ही परिवार के प्रत्येक सदस्य द्वारा भगवान सूर्य को जल अर्पण किया जाता है तथा अगली सुबह के लिए आने का वचन देकर घर की ओर लौट आते हैं 

चौथे दिन शुक्रवार 8 नवंबर को सुबह सुबह 4:00 बजे से ही महिलाएं और पुरुष घाट पर पहुंच जाते हैं और फिर इस प्रक्रिया के तहत सूप में पूजा सामग्री लेकर पानी में खड़ी हो जाती है और छठी माता के गीत गाती हुई भगवान सूर्य के उदय होने का इंतजार करती हैं जैसे ही आकाश में सूर्य भगवान की लालिमा नजर आती है वैसे ही वहां पर उपस्थित सभी लोगों के चेहरे पर खुशी साफ झलकती है और परिवार के प्रत्येक सदस्य बारी-बारी से सूर्य भगवान की आराधना एवं पूजा करते हैं एवं एवं बच्चे वहां पर आतिशबाजी का आनंद लेते हैं वहां पर उपस्थित सभी लोग एक दूसरे को बधाई देते हैं।

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