भक्तों की पुकार पर भगवान धरा पर आकर करते हैं राक्षसों का विनाश- मनोज
माधौगढ (जालौन) सात दिवसीय श्रीमद्भागवत में अंतरराष्ट्रीय कथावाचक समाज सुधारक पं मनोज अवस्थी ने वामन अवतार व राजा अम्बरीष का प्रसंग, श्रीकृष्ण जन्म व नयनाभिराम झांकी पर भाव विभोर श्रद्धालु हुए । कथावाचक ने श्रीमद्भागवत कथा के माध्यम से लोगों में भगवान के प्रति भक्ति का संचार करने का प्रयास किया। उन्होंने राजा अम्बरीष के विषय में बताया कि उनका मन सदा के लिए कृष्ण के श्री चरणकमलों में लगा हुआ था, वाणी उन्हीं के गुणानुवाद (गुणों के वर्णन) में लगी रहती थी। जिनके हाथ जब भी उठते श्रीभगवान के मंदिर की सफाई के लिए ही उठते और कान सिर्फ भगवान की कथा सुनने को आतुर रहते थे। उनकी आंखें सदैव हरि मूर्ति दर्शन को प्यासी रहती थीं और अपने शरीर से भक्तों की सेवा में ही लगे रहना चाहते थे। उनकी नासिका भगवान के श्रीचरणों में चढ़ी हुई श्रीमती तुलसी देवी के सुगन्ध लेने में तथा अपनी जिह्वा के स्वाद के लिए भगवान को अर्पित नैवेद्य के स्वाद में लगा दिया। अपने पैरों को उन्होंने तीर्थ दर्शन हेतु पैदल चलने में लगा दिया और सिर तो सदैव भगवान के श्रीचरणों में झुके ही रहते थे। माला. चन्दनादि जो भी दिखावे अथवा भोग सामग्रियां थीं, वे सब उन्होने भगवान के श्रीचरणों में अथवा अलंकार हेतु समर्पित कर दिया और भोग भोगने अथवा भोगों की प्राप्ति हेतु नहीं, अपितु भगवत्वरणों में निर्मल भक्ति की प्राप्ति हेतु अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। ये होती है निर्मल भक्ति का स्वरूप जो शास्त्रानुसार है। यही स्वभाव दुर्वासा जैसे ऋषि के ऊपर भी एक बार भारी पड़ गया। वो हुआ यूं कि एक दिन दुर्वासा जी भोजनार्थ अपने सहस्रों शिष्यों के साथ राजा अम्बरीष जी के यहां पहुंचे। उस दिन द्वादशी थी, अर्थात एकादशी का पारण और समस्या ऐसी थी कि थोड़ी ही देर में अर्थात जल्द ही त्रयोदशी लगने वाली थी और पारण द्वादशी में ही करना होता है। प्रदोष लगने से पहले। अब दुर्वासा ऋषि को ये बात ज्ञात थी, फिर भी वो लेट हो रहे थे। अब अम्बरीष जी ने अपने पुरोहित से पूछा कि प्रभु ये बताएं कि दरवाजे पर कोई अतिथि आया हो, तो हम बिना उन्हें भोजन करवाए स्वयं पारण कैसे कर सकते हैं और न करें, तो मुहूर्त निकला जा रहा है, ऐसे में हम करें तो क्या करें। भगवताचार्य ने कान्हा के जन्म पर ऐसा भजन सुनाया कि श्रद्धालु श्रोता झूम उठे। नंद घर आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की .. जैसे बधाई गीतों पर पूरा पंडाल पीला वस्त्रों में भक्त जन नाचते गाते नजर आए। यह नजारा श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का था। श्रीमद् भागवत कथा में चौथे दिन गुरुवार को कर्मयोगी भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव बड़े आनंद और हर्षोल्लास के साथ धूम- धाम से मनाया गया। कंस के कारागार में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। भगवान कृष्ण जन्मोत्सव में नन्हें बालक ने भगवान कृष्ण का रूप धारण कर उपस्थित श्रद्धालुओं का मन मोह लिया। सभी ने कृष्ण जन्म का आनंद लिया। कथा वाचक के भजनों पर नृत्य करते हुए पुष्प वर्षा कर मिठाईयां बांटी गई। उन्होंने बताया कि जब-जब पथ्वी पर कोई संकट आता है, दुष्टों का अत्याचार बढ़ा है तो भगवान अवतरित होकर उस संकट को दूर करते हैं। भगवान शिव और भवगान विष्णु ने कई बार पृथ्वी पर अवतार लिए हैं। भक्तों की पुकार पर दैत्य दानवों के संहार के लिए भगवान स्वयं धरती पर प्रकट हुए और दुष्टों का हर युग में संहार किया। भक्त प्रह्लाद वामन अवतार नर सिंह द्वारा वध भगवान का जन्म विवाह लक्ष्मण परशुराम संवाद आदि कथाएं बड़े ही सरल सहज भाव से भक्तों को परोसी । इस मौके पर पारीक्षत शांति शर्मा पत्नी अमर नाथ शर्मा नूतन व्यास मनुष ब्यास दीपाली व्यास गिरीष व्यास राघवेन्द्र व्यास नगर पंचायत अध्यक्ष चंद्रप्रभा नरेश पाठक नव्या नित्या उद्भव वैदेही बाबूलाल पाठक सीमा जितेंद्र शर्मा बंदना पाठक बबलू सीमा अग्निहोत्री गिरवां धर्मेश करमेश शर्मा पुष्पा श्याम बिहारी दैपुरिया रामजी लाल द्विवेदी रामप्रकाश द्विवेदी रघुवीर शरण शिवहरे कृष्णा अवंतिका धर्मेश व्यास अंश एवं अखिल पाठक निर्मला अशोक कुमार रिंकी आशीष गुड़िया ऋषिकेश अखिलेश याज्ञिक सुरेन्द्र महेन्द्र देवेंद्र सहित अन्य भक्तों का बड़ा जत्था मौजूद रहा । वहीं कथा में पधारे क्षेत्रीय विधायक मूलचंद्र निरंजन का माउंटो के द्वारा सम्मानित किया गया।
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